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क्या रूप वासना
का होता !
इसकी न उन्हें अनुभूति हुई । उनमें श्रासक्ति जगाने में, असफल साम्राज्य विभूति हुई ||
भोग
उन्हें,
घेरे रहते सुख पर बन न सके वे भोगी थे।
योगों के साधन के अभाव -
थे, पर वे मन से योगी थे ॥
चौबीस वर्ष की आयु हुई, पर मुख शिशु जैसा भोला था । जाता न जननि के सिवा किसी नारी से उनसे
बीला था ॥
परम ज्योति महावीर
अभी
था ।
थे युवक हुये, पर ज्ञात उनको यौवन का मर्म न उनसे विवाह की चार्च भीकरना साधाण कर्म न था ॥
वे दृढ़ थे अपने
निश्चय पर
करते थे कभी
प्रमाद
नहीं |
रहे
जहाँ ।
चाहे जो होता उनको था हर्ष विषाद नहीं ||