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परम ज्योति महावीर
सुन्दर चित्रों का ढेर लगारहता था उनके पास सदा । जिनके गुण दोषों पर चिन्तन वे करतीं थीं सोल्लास सदा॥
अतएव किसी को अस्वीकृतकरना थी लवुतम बात उन्हें । कारण, तन रचना-सुषमा का वैशिष्ट्य सभी था ज्ञात उन्हें ।
राजाओं के सन्देशे मो, मिलते थे बारम्बार उन्हें । पर स्वयं टालती रहती थीं, कौशल से किसी प्रकार उन्हें ।।
केवल न भूप ही उत्सुक थे, मोहित थीं उनकी बालाएँ। वे भावुकता में गूथ लिया--
करतीं थीं नित वर मालाएं ।। अभिलाष उन्हीं की कर करतींथी 'मोहनीय' का बन्ध कई । करना न चाहती थीं उनके अतिरिक्त अन्य सम्बन्ध कई ।।