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इतना कह नृप चुप हुये, सभी
ने कहा - " नाम यह सुन्दरतम ।
हो 'वर्धमान' ही नाम करण, करते समोद अनुमोदन हम ||
सब की सहमति पा नामकरणहो गया, सभी सन्तुष्ट हुये । वे 'वर्धमान' संवर्धित हो. क्रमशः अतिशय परिपुष्ट हुये ।।
वय संग हुई थी वर्धमान, उनके तन की सुन्दरता ग्रव । थे मति, श्रुति, अवधि जनमते ही, पर इनमें हुई प्रखरता अत्र |
परम ज्योति महाव
सित चन्द्रकला सा उनका नित-बढ़ना सबको सुखदाता उन 'वर्धमान' के वर्धन
नृप-वैभव बढ़ता जाता
उनकी परिचर्या हेतु नियत-थी पाँच धात्रियाँ, दास कई ।
मित्र,
खेला करते थे
हर समय उन्हीं के
पास कई ||
बाल
था ।
से,
था ||