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परम ज्योति महावी
शुभ नियत समय पर जात कर्मसम्पन्न सविधि सोल्लास हुवा । फिर चन्द्र, सूर्य के दर्शन का, भी शुभ उत्सव सविलास हुवा ।।
दस दिन तक यों ही महोत्सवोंके ये अभिराम प्रवाह चले। अवलोक जिन्हें आबाल-वृद्ध, अपना सौभाग्य सराह चले ।
वह 'कुण्ड ग्राम' ही नहीं, अपितुथी सजी पुरी 'वैशाली' भी । वह थी निसर्ग से सजी किन्तु, अब हुई विशेष निराली ही ।।
बारहवें दिन 'सिद्धार्थ' नृपतिने मबका किया निमन्त्रण था । प्रिय सुहृद्-स्वजन-सामन्तों से, भर गया सकल राजाङ्गण था ।।
नृप ने भोजन ताम्बूल वसनसे सबका अति सत्कार किया । तदनन्तर सबके सम्मुख यों, घोषित निज उद्गार किया ।।