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साठवाँ सर्ग
कुछ किन्नरियाँ भी तो नर्तनकरती थी उनके पास वहीं । कुछ महिला मण्डल के सम्मुख, थीं नाच रहीं सोल्लास वहीं ।।
भू पर नर्तन करने वाली, उड़ दिखने लगती अम्बर में। फिर वही नाचने लगती थी,
अवनी पर आकर क्षण भर में || कुछ तडित् रूप में नर्तन कर, नयनों को अधिक लुभातों थीं। कुछ इन्द्र-अँगुलियों पर स्वनाभि-- रख नचतीं हुई दिखातीं थीं।
उनके इस कौशल से सबने, स्वर्गीय सुखों का भान किगा। नरगति में रहते हुये सुरोंके अति सुख का अनुमान किया ।
इस इन्द्र-प्रदर्शित नर्तन ने, हर मन पर पूर्ण प्रभाव किया ।। कुछ ने तो अधिक प्रभावित हो, सुर बनने तक का भाव किया ।।