________________
परम ज्योति महावीर आँगन में उनके आते ही, अति चकित सभी के नेत्र हुये । देवागम द्वारा देव धामसे 'कुण्ड ग्राम' के क्षेत्र हुये ॥
कर दिव्य देवियों का दर्शन, हर दर्शक को आनन्द हुआ । हर दृष्टि-भ्रमर ने तृष्णा से, उनकी छवि का मकरन्द छुपा ।।
उनने गायन औ' वाद्य सहित, प्रारम्भ नृत्य व्यापार किया । अपनी नर्तन शैली से हर, नर-तन-मन पर अधिकार किया ।
उनके नैपुण्य समेत किसीने अपना पुण्य सराहा था । निज पुण्य समेत किसी ने तो, उनका नैपुण्य सराहा था ॥
निज पूत रूप में 'जगपिता'को पाकर रानी पूत हुई । प्रभू के प्रभवन से राजा की, प्रभुता, प्रभु-शक्ति प्रभूत हुई ।