SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "भारतीय संस्कृति के विकास में जैन वाङमय का अवदान' प्रथम खण्ड पृ. 452-454 में स्व. डा. नेमीचंद शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने आचार्य श्री महावीर कीर्तिजी महाराज के गुटके के आधार पर प्रमुख दि. जैन आचार्यों का विवरण दिया है। इसमें पद्मावतीपुरवाल के आचार्य इस प्रकार हैं (पृष्ठ संख्या 30 देखें) संक्षिप्त परिचय आचार्य श्री पूज्यपाद देवनन्दि जी महाराज भारतीय जैन परम्परा में जो लब्ध प्रतिष्ठ ग्रन्थकार हुए हैं, उनमें आचार्य पूज्यपाद देवनन्दि का नाम विशेष तौर से उल्लेखनीय है। इन्हें विद्वता और प्रतिभा का समान रूप से वरदान प्राप्त था। जैन परम्परा में स्वामी समन्तभद्र और सन्मति के कर्ता सिद्धसेन के बाद पूज्यपाद देवनन्दि को ही महत्ता प्राप्त है। आपकी अमरकीर्तियों का प्रभाव दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराओं में समान रूप से दिखाई देता है। इस कारण उत्तरवर्ती विद्वान इतिहासज्ञों और साहित्यकारों ने इनकी महत्ता और विद्वता को स्वीकार किया है। और उनके चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं। आचार्य देवनन्दि अपने समय के प्रसिद्ध तपस्वी मुनि पुङ्गव थे। वे साहित्य जगत के प्रकाशमान सूर्य थे जिनके आलोक से समस्त वाङमय आलोकित रहेगा। इनका दीक्षा नाम देवनन्दि था। बुद्धि की प्रखरता के कारण वे जिनेन्द्र बुद्धि कहलाये और देवों द्वारा उनके चरण-युगल पूजे गये, इस कारण वे लोक में पूज्यपाद कहलाए। पावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy