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की हस्तलिखित एक प्रति पाई गयी। उसकी रचना कवि भानामल गोलालारे और कवि विश्वनाथ पद्मावती पुरवार इन दोनों ने मिलकर की थी। अपनी प्रशस्ति में कवि भाणमल जी लिखते हैं
नगर जहांनाबाद रहाई। पद्मावति पुरवार कहाई।
विश्वनाथ संगति शुभ पाय । तब यह कीनी चरित बनाई।। 5. अनेकान्त जून 1969 पृष्ठ 58 पर पं. परमानन्द शास्त्री ने 'जैन समाज की कुछ उपजातियां' शीर्षक लेख में लिखा है__पद्मावती पुरवाल सभी दिगम्बर जैन आम्नाय के पोषक हैं और बीसपंथ के प्रबल समर्थक हैं, प्रचारक हैं। पद्मावती पुरवाल ब्राह्मण भी पाये जाते हैं। यह अपने को ब्राह्मणों से संबद्ध मानते है। इस जाति के विद्वानों में ब्राह्मणों जैसी प्रवृत्ति पाई जाती है।
इन्हीं पं. परमानन्द शास्त्री ने 'जैनधर्म का प्राचीन इतिहास' भाग-2 पृष्ठ 458 पर लिखा है__ चौरासी जातियों में पद्मावती पुरवाल भी एक उपजाति है जो आगरा, मैनपुरी, एटा, ग्वालियर आदि स्थानों में रहती है। इनकी संख्या भी कई हजार पाई जाती है। यद्यपि इस जाति के कुछ विद्वान अपना उदय ब्राह्मणों से बतलाते हैं, परन्तु इतिहास से उनकी यह कल्पना कल्पित जान पड़ती है। इसके दो कारण हैं-एक तो यह कि उपजातियों का इतिवृत्त अभी अंधकार में है। जो कुछ प्रकाश में आया है उसके आधार से उसका अस्तित्व विक्रम की दशवीं शताब्दी से पूर्व का ज्ञात नहीं होता। हो सकता है कि वे उसके पूर्ववर्ती रही हों, परन्तु बिना किसी प्रामाणिक आधार के इस संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता।
पट्टावली द्वारा दूसरा कारण भी प्रामाणिक प्रतीत नहीं होता। क्योंकि पट्टावली में आचार्य पूज्यपाद (देवनन्दी) को पद्मावती पुरवाल होना प्रमाणित नहीं होता, कारण कि देवनन्दी ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे। पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास