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सम्मिलित होने का प्रश्न है तो कवि विनोदीलाल ने जयमाला में 24 जातियों का उल्लेख किया है उसमें पद्मावती पुरवाल जाति का नाम है। इसके अलावा संवत् 1852 की एक पाण्डुलिपि, बखतराम शाह द्वारा वर्णित बुद्धि विलास पं. लक्ष्मीचन्द जी ने लक्ष्मी विलास में भी 84 जातियों का उललेख है उनमें भी पद्मावती पुरवाल नाम है।
2. साहित्य में पद्मावती पुरवाल जैन जाति के उत्पत्ति के संबंध में कुछ प्रकाश 'ब्रह्मगुलाल चरित्र' (17वीं शताब्दी) से मिलता है। उसके अनुसार इस जाति का सोमवंश और सिंह तथा धार दो गोत्र थे। इन्होंने क्षत्रिय वृत्ति त्यागकर वणिक वृत्ति अपनाई और धन-धान्य से परिपूर्ण हो गये। ___3. श्रद्धेय पं. नाथूराम प्रेमी ने ‘परवार जाति के इतिहास पर प्रकाश' नाम से अपने लेख में परवारों के साथ पद्मावती पुरवालों का संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। और पं. बस्तराम के 'बुद्धि विलास' के अनुसार सातवां भेद भी प्रगट किया है। तथा पं. फूलचंद सिद्धान्त शास्त्री ने अपने 'परवार जाति के इतिहास' में इसकी पुष्टि की है।
परन्तु पं. परमानन्द शास्त्री इससे सहमत नहीं हैं। उन्होंने लिखा है कि हो सकता है कि इस जाति का संबंध परवारों के साथ रहा भी हो, किन्तु पद्मावती पुरवालों का निकास परवारों के सत्तममूर पद्मावतिया से हुआ हो, यह कल्पना ठीक नहीं जान पड़ती है और न किसी प्राचीन प्रमाण से उसका कोई समर्थन ही होता है। और न सभी 'पुरवाड वंश' परवार ही कहे जा सकते हैं। क्योंकि पद्मावती पुरवालों का निकास पद्मावती नगरी के नाम पर हुआ है, परवारों के ‘सपृममूर' से नहीं। आज भी जो लोग कलकत्ता और देहली आदि दूर शहरों में चले जाते हैं उन्हें कलकतिया या कलकत्ते वाला, देहलवी या दिल्लीवाला कहा जाता है। ठीक उसी तरह परवारों के सत्तम मूर पद्मावतिया की स्थिति है। 4. ललितपुर के बड़े मंदिर के शास्त्रागार में कविताबद्ध चारुदत्त चरित
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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