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और क्षत्रियों की एक शाखा प्रथक जाति 'पद्मावतीपुरवाल' के रूप में पहचानी जाने लगी।
अब पद्मनगर या पद्मावतीपुर भी दृष्टि डालना समीचीन होगा। क्या पद्मनगर का कोई भौगोलिक प्रमाण है? यह खोज का विषय है। हां, जो कुछ सामग्री उपलब्ध है, उससे यह विचार पक्का होता है कि पद्मावतीपुर या पद्मनगर.था। ‘सरसवती कंगभरण' नामक ग्रन्थ में जो ग्यारहवीं शताब्दी का है, पद्मनगर का वर्ण आया है। पौराणिक काल में यह पद्ममनगर अपने वैभव एवं विशालता के कारण बहुत प्रसिद्ध था।' उस काल में पद्मावती नाम का एक जनपद भी था, जिसका प्रधान केन्द्र 'पद्मनगर' था। इस सम्बन्ध में कोई उल्लेखनीय खोज तो हुई नही, मात्र अनुमान लगाया जाता है कि जनपद में आधुनिक ग्वालियर, मुरैना तथा शिवपुरी सम्भाग का कुछ भाग सम्मिलित था। इस जनपद में 'नागवंशीय' राजाओं का शासन था, जिनके शासनकाल के अनेक सिक्के यत्रतत्र मिले हैं। यह नागवंशीय शासन मथुरा तक फैला हुआ था। मुरैना के एक स्थान से लगभग 18 हजार मुद्राएं एवं झांसी डिविजन से भी हजारों मुद्राएं, जो चांदी एवं स्वर्ण की है; नागवंशीय शासकों के शासन काल की प्राप्त हुई हैं। नव नागों (नए नागों) तथा ज्येष्ठ नागों इन दो प्रकार के नागों का संकेत इन सिक्कों में मिलता है। उन दिनों मथुरा, पद्मावती तथा विदिशा व्यापारिक मार्ग पर विशालतम नगर थे, जो दूर-दूर तक अपने व्यापार के लिए प्रसिद्ध थे।
खजुराहो के वि. सं. 1052 के एक शिलालेख में भी पद्मावती (पद्मनगर) नगर का वर्णन मिलता है। उस शिलालेख से यह स्पष्ट होता है कि उन दिनों पद्मावती नगर ऊंचे-ऊंचे शिखरों, चौड़े, राजमार्गों एवं स्वच्छ श्वेत भित्ति वाले गगनचुम्बी भवनों से सुशोभित था।
साहित्य में पद्मावती पुरवाल जैन जाति की उत्पत्ति से सम्बन्ध में कुछ 403
पथावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास