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गृहस्थाचार्य के रूप में मान्यता है। यह प्रसिद्ध है कि पांडे मूलतः
ब्राह्मण हैं। - दान और स्वाभिमान प्रवृत्ति दोनों जातियों में महत्त्व रखती है। -- दोनों जातियों ने गांवों को ही अधिक पसन्द किया। क्षत्रिय और पद्मावती पुरवाल अधिकांश में गांवों में ही रहते थे। सुरक्षा और
व्यवसाय की दृष्टि से यह बात उतनी नहीं रही। - अनेक रूढ़ियां दोनों जातियों में समान है। - वैवाहिक कार्य अन्तः समूह में ही होते हैं। जैसे सप्तपदी अग्नि के
चारों ओर सम्पन्न करना। पंडितों से ही विवाह पढ़वाना। आज लगभग पचास वर्षों पहले तक दोनों में बाल विवाह का प्रचलन होना आदि। दूल्हे का पहनाव 'जामा' (एक प्राचीन क्षत्रिय वीर पोशाक) दोनों जातियों में समान दिखाई देता था। फेंटा कटारी का बांधना, बारात का कन्या पक्ष के घर पर पहुंचने की विधि को 'चढ़ाई करना' कहना, तीर चलाना आदि ऐसी सांकेतिक सहक्रियाएं हैं, जो यह बताती हैं कि पद्मावती पुरवाल जैन जाति अन्य जैन जातियों से भिन्न तथा क्षत्रियों के अति निकट है। तो यह कहना पद्मावती सोमवंशीय क्षत्रिय पुत्र है, कोई असत्य प्रतीत नहीं
मालूम पड़ता। चूंकि सोमवंशीय जयकुमार का निवास हस्तिनापुर था। असके वंशज धीरे-धीरे संख्या की दृष्टि से तथा कुछ अज्ञात कारण भी रहे होंगे, से वे लोग पद्मनगर में आकर बस गए। यह भी अनुमान लगाया जाता है कि कालान्तर में इस पदनगर का नाम बिगड़कर पद्मावतीपुर हो गया और यहां के रहने वालों को बाहर 'पद्मावतीपुरवाले' के नाम से जाना जाने लगा। यही 'पद्मावती पुर वाले बिगड़कर 'पद्मावती पुरवाल शब्द रह गया पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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