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पं. शिवमुखराय जैन पं. शिवमुखराज जी (कुतकपुर, आगरा, सन् 1902) का जन्म जमींदार घराने में होने पर भी स्वभाव से अत्यन्त भद्र दयालु एवं धर्मात्मा थे। मारोठ (राजस्थान) जैन विद्यालय में 28 वर्षों की अध्यापकी के बाद वे इन्दौर के रायबहादुर हीरालाल पाटनी द्वारा संस्थापित पारमार्थिक ट्रस्ट के निदेशक रहे और उसके अन्तर्गत चलने वाले औषधालय, विद्यालय (मारोठ), कन्या विद्यालय (आगरा एवं कामा), छात्रवृत्ति-फण्ड, जीवदया-फण्ड, जीर्णोद्वार-फण्ड, धर्मप्रचार-फण्ड, जीवदया-प्रसार-फण्ड, जैन बोर्डिंग हाऊस तथा लायब्रेरी के कार्यों का उन्होंने सुचारु रूप से संचालन किया।
श्री बाबूराम जैन बजाज 'दयासागर' बैरिस्टर चम्पतराय जी के अनन्य मित्र श्री बाबू जी बजाज (सन् 1890) अपने समय के जैनाजैन समाज में समान रूप से प्रतिष्ठित थे। समकालीन गौशालाओं के अध्यक्ष स्वामी शंकराचार्य थे, जब कि वे स्वयं उनके महामन्त्री थे। महात्मा गांधी द्वारा संस्थापित जीवदया-प्रचारिणी समिति के वे संस्थापक-मंत्री तथा पद्मावती-पुरवाल-समाज की अनेक संस्थाओं के सक्रिय कार्यकर्ता थे। उन्होंने उस समय की अनेक रियासतों में होने वाली प्राणि-हिंसाओं को निर्भीकतापूर्वक बन्द कराई थी, जिसके उपलक्ष्य में हिन्दू महासभा ने उन्हें 'दयासागर' की उपाधि से विभूषित किया था।
पं. अमोलकचन्द्र उडेसरीय - पं. अमोलक चन्द्र उडेसरीय (इन्दौर, सन् 1893) की विशेषता थी कि उनके पितृवत् व्यवहार से बोर्डिंग-हाऊस के सभी छात्र उन्हें अपने पिता के समान संरक्षक मानते थे।
उन्होंने जीवदया प्रचारिणी सभा के माध्यम से अनेक स्थलों पर 365
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास