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स्व. प्रो. विमलदास जैन कौंदेय'
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व, जैन दर्शन के अनेक प्रकाण्ड विद्वान हुए हैं। उस श्रृंखला के समकालीन विद्वानों में प्रो. विमल दास कौंदिया जैन ने अपना ही स्थान बनाया था। चावली गांव के एक साधरण से शाह राजा राम जी के परिवार में सन् 1910 में उन का जन्म हुआ था। अपने बाल्यकाल में माता-पिता का संरक्षण न होते हुए भी, उन्हें जैन धर्म के मूल- संस्कार परिवार से प्राप्त हुए। प्रांभिक व उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे स्याद्वाद महाविद्यालय, बनारस पहुंच गये। मेधावी छात्र होने के कारण, उन्हें शुरू से ही शिक्षा के लिये छात्र- वृत्ति मिली। इसी महाविद्यालय से उन्होंने न्यायतीर्थ व शास्त्री की उपाधियां प्राप्त कीं । यही पर वे आदरणीय क्षु. गणेश प्रसाद जी वर्णी तथा पं. कैलाश चन्द्र शास्त्री जी के सान्निध्य में रहे। साथ-साथ बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से संस्कृत तथा दर्शन शास्त्र में उच्चतम शैक्षणिक (एम.ए.) उपाधियां प्राप्त कीं । स्याद्वाद महाविद्यालय, बनारस को वह अपनी जननी की तरह सम्मान देते थे। कुछ वर्षों के लिये इस संस्था के अधिष्ठाता के पद पर अवैतनिक सेवा प्रदान करते हुए, संस्था के कार्यकलापों से जुड़े रहे।
विषद अध्ययन के उपरान्त उन्होंने देहली तथा अम्बाला शहर (पंजाब) में अध्यापन का कार्य किया तथा बाद में बनारस से लगाव होने के कारण वे वापस बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। यहां आर्ट्स कालेज बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में जैन दर्शन तथा वेदान्त बौद्ध व अन्य दर्शनों की तुलनात्मक शिक्षा दी। यहीं पर उन्होंने ने शोध
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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