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आगरा प्राप्त सूचनाओं के अनुसार कहा जा सकता है कि आगरा में 1920 के लगभग पद्मावती पुरवाल जाति के सर्वश्री अमृतलाल, मूल निवासी बांस रिसाल (खंदौली) का आगमन हुआ। इसी परिवार के बाबू हजारीलाल वकील, भीष्पचन्द, राज महेन्द्र जैन वकील आदि आये। इसी समय एक
और परिवार श्री धनपतिराय का नाई की मंडी में आया। अवागढ़ से सर्वश्री कम्पिलदास, बनारसीदास, मथुरादास, अमृतलाल प्यारेलाल, सराय जैराम (बरहन) से श्री मुन्नीलाल आदि के आगरा आगमन की जानकारी मिलती है। पद्मावती पुरवाल जैन समाज की आगरा में जिन महानुभावों ने अपने तन, मन और धन से यथाशक्ति सेवा की है, उनमें सर्वश्री भीष्मचन्द, बाबू हजारीलाल, वकील (1964) समाज के मंत्री थे। मुंशी गेंदालाल जी, श्री कामता प्रसादजी, सेठ श्री सुनहरीलालजी, श्री पूरनचन्दजी, श्री आनन्द स्वरूपजी, श्री नरेशचन्द जैन एडवोकेट, मास्टर हजारीलाल, श्री मुन्नीलाल, श्री शांतिप्रसाद आढ़ती, श्री शांतकुमार एवं श्री जयंती प्रसाद प्रमुख रूप से रहे हैं।
25-5-82 को श्री पद्मावती पुरवाल दिगम्बर जैन मंदिर के लिये पार्श्वपुरी धूलियागंज, आगरा में एक भूखंड खरीदने के बाद एक टीन शेड में जिन प्रतिविम्ब विराजमान कराकर अस्थायी मंदिरजी का रूप दे दिया गया। थोड़े समय बाद आचार्य श्री देशभूषणजी महाराज, आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज का इस मंदिर में आगमन हुआ। मार्च 1983 में
आगरा में हुए पंचकल्याणक महोत्सव में पार्श्वनाथ भगवान की भव्य प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराकर यहां विराजमान किया गया। आज यह मंदिर भव्य रूप में हमारे सामने है। इस मंदिरजी के एक हाल में नंदीश्वर द्वीप की रचना से मंदिरजी को अधिक भव्यता प्राप्त हो गई है।
सेठ श्री सुनहरी लाल (दौलतराम सुनहरीलाल, बेलनगंज, आगरा) ने पचायतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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