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________________ के पद पर रहकर पूर्णरूपेण संचालन किया। श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र जामनेर में पांच वर्षों तक क्षेत्र के प्रचार के पद से जीर्णोद्धार हेतु दान राशि एकत्रित करवाई। आपने वर्षों कांच मंदिर जी अकोदिया ग्राम में प्रचारक के रूप में पूर्णरूपेण योगदान दिया । आपने श्री तीर्थराज श्री सम्मेद शिखरजी की 11 बार यात्राएं की लगभग 51 पैदल वंदनायें की और सभी तीर्थों की यात्राएं कर चुके हैं। वृद्धावस्था एवं अस्वस्थता होने पर भी तीर्थ वंदना के भाव संजोय रहते हैं। मुनिश्री 108 श्री विवेकसागर जी के संघ सहित बड़नगर से सोनागिर तक पैदल साथ-साथ यात्राएं की। 108 श्री शांतिसागर जी छाणी बड़नगर से सिद्धवरकूट तक के बिहार में साथ रहे। आचार्य विमलसागर जी के संघ को महेश्वर से सिद्धवरकूट तक पैदल विहार कराया । पूज्य माताजी 105 सुपार्श्वमतीजी अर्यिकाजी के 11 पिच्छिका के संघ को राजस्थान के रुणिजा से बड़नगर तक पैदल चलकर साथ आये। 108 मुनिश्री नमीसागर जी श्री नेमीसागर जी के विहार में बड़नगर से दिल्ली तक साथ-साथ पैदल चले। आपको कई संस्थाओं के प्रमाण पत्र प्राप्त हैं। अपने जीवन को सादा सरल अल्पग्रहि व अल्प आरंभी ढाल रखा है। संतों के साथ वर्षों रहकर धर्म एवं पुण्य अर्जित करना आपके निर्मल स्वभाव में निहित है। स्व. पं. नन्नूमलजी जैन, कालापीपल मण्डी (जिला शाजापुर) मृदुभाषी, मधुर स्वभावी एवं मिलनसार स्व. पं. नन्नूमलजी जैन का जन्म सन् 1901 में ग्वालियर राज्य के शाजापुर जिले के शुजालपुर नगर के प्रतिष्ठित परिवार में श्री मातीलाल जी जैन के यहां हुआ था । बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ जाने के कारण आपका पद्मावतीपुस्वाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 163
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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