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__ कुछ तथाकथित उदारचेता जनों की दृष्टि में इस प्रकार जातियों-उपजातियों की पहिचान को रेखांकित करना सामाजिक एकता के विपरीत और अनावश्यक कहा जाता है, परन्तु वास्तविकता ऐसी नहीं है। बाग-बगीचे की शोभा तभी है जब उसका हर पौधा अपनी विशिष्ट प्रजाति का प्रतिनिधित्व करता हो। उसकी हर बेल, हर पत्ती, हर कली और हर पुष्प अपने-अपने विशेष रूप-रस-गंध और स्पर्श से सम्पन्न हों। अपनी अलग पहिचान रखते हों यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि इस विविधता में से ही एकता का सूत्र निकलता है। विविधता के बिना एकता का कोई आधार ही नहीं हो सकता और अतीत का दीपक हाथ में लेकर, उसके प्रकाश में की गई भविष्य की यात्रा ही सही, सुरक्षित और सार्थक यात्रा होती है।
प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश तो स्थापित ‘सम्पादकाचार्य' हैं। उनके सम्पादन में यह कृति संयोजित है तो आपका यह प्रकाशन निश्चित ही सफलता का स्पर्श करेगा। इस उपयोगी और सामयिक प्रकाशन के लिए मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। आपके इस सार्थक योजना के कार्यान्वयन के लिये हार्दिक बधाई।
-नीरज जैन
शांति सदन सतना (म.प्र.)
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