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________________ भाषण शैली द्वारा ज्ञान प्रसार और स्वाध्याय सम्वर्द्धन का सराहनीय कार्य किया। आपकी विद्वता से प्रभावित होकर गिरडीह, जोधपुर, सुजानगढ़, कलकत्ता और गोहाटी में आपका सादर अभिनन्दन किया गया तथा सुजानगढ़ समाज ने आपको 'धर्मालंकार' की सम्मानित उपाधि प्रदान की। प्रमुख रचनाएं-आस्तिक का नमस्कार, भक्ति मार्ग, विचित्र परिणय, बाहुबली वैराग्य, समदर्शी (हिन्दी एकांकी) आदि हैं। इसके अलावा कुछ धार्मिक निबन्ध भी लिखे जो अभिनन्दन ग्रन्थों में यथासमय प्रकाशित होते रहे। __ आपको क्रिया काण्डों का विशेष ज्ञान था जो धरोहर के रूप में प्राप्त हुआ था। आपने अनेक वेदी प्रतिष्ठायें सम्पन्न करायीं। आपको मंत्र शास्त्रों का विशेष ज्ञान था। सन् 1981 में आपने आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज की प्रेरणा से सहारनपुर में रात्रि विद्यालय की स्थापना की तथा उसके मंत्री रहे। आप शास्त्री परिषद की प्रबन्धकारिणी के सदस्य तथा अजमेर की कई स्थानीय संस्थाओं के सदस्य रहे। लाला हुन्डीलाल जैन, मुहम्मदी (आगरा) सन् 1947 में देश की आजादी के बाद नवनिर्माण के लिए किये गये रचनात्मक कार्यों में आपका पूर्ण सहयोग रहा। ग्राम सभा मुहम्मदी के प्रधान पदों पर रहते हुए पंचायत भवन और प्राइमरी पाठशाला का निर्माण कराया। टूंडला-अवागढ़ रोड से अपने गांव तक सड़क मिलाने का प्रारम्भ आपके द्वारा ही किया गया। आपके सुपुत्र श्री फूलचन्द जी जैन अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण जनसेवी कार्यकर्ता रहे हैं और क्षेत्र के विकास में सक्रिय भाग लिया है। पथावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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