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3 तो अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। भाई प्रताप जी ने हमारे सुझाव पर देश के शीर्षस्थ जैन विद्वानों से पद्मावतीपुरवाल जाति के बारे में उनके पास जो भी जानकारी उपलब्ध हो, उसके आधार पर अपने विचार लिखकर भेजने का विनम्र अनुरोध किया था । उन्होंने भी उनकी पुकार को अनसुना नहीं किया । उनसे प्राप्त इन आलेखों से इस कृति का गौरव बढ़ा है। हम इन सभी विद्वज्जनों की इस आत्मीयता से कृतार्थता का अनुभव कर रहे हैं।
प्रगतिशील पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन संगठन (पंजीकृत) के महामंत्री श्री प्रताप जैन तथा अन्य सभी पदाधिकारी एवं सदस्यगण साधुवाद के पात्र हैं, जिन्होंने इस कृति का प्रकाशन कर एक बड़े दायित्व की पूर्ति की है । विशेष रूप से भाई प्रताप जैन की उत्कट लगन प्रशंसनीय एवं सराहनीय रही है । यदि वह इस दिशा में सकारात्मक पहल न करते तो अभी न जाने कितनी दशाब्दियों तक लोगों को और प्रतीक्षा करनी पड़ती।
पद्मावतीपुरवाल जाति की इस ऐतिहासिक यात्रा में जिनका अमूल्य अवदान रहा है, किन्तु जिनका उल्लेख इस कृति में नहीं हो सका है, उनसे हमारी अपील है कि वे इस कमी के लिए प्रकाशकों को दोष न दें। प्रकाशक या लेखक कोई सर्वज्ञ तो हैं नहीं, जिन्हें घर पर बैठे हुए ही सारी जानकारियां सुलभ रहती हों। इसके लिए यदि कोई दोषी है तो स्वयं उनका अपना प्रमाद ही दोषी है। अब तक अपनी जाति का कोई इतिहास प्रकाशित न हो पाने के पीछे इतिहास को सुरक्षित एवं संरक्षित रखे जाने के प्रति जाति की उदासीनता ही एक कारण है। जो भी हो, हमें उन सबका आभार मानना चाहिए, जिनके श्रेय, सौजन्य और सहयोग से पहली बार यह कृति प्रकाशित हो सकी। यदि भविष्य में कुछ अछूती और अनुपलब्ध जानकारियां हमें मिल सकीं तो इस इतिहास के दूसरे संस्करण में उन्हें अवश्य शामिल किया जाएगा, यह हम आश्वासन देते हैं । इत्यलम् ।
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-नरेन्द्रप्रकाश जैन पूर्व अध्यक्ष श्री भा. दि. जैन शास्त्रि परिषद