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नहीं पकड़ने दिये और न कुत्तों को मारने दिया गया।
नगर में शिक्षा के विकास के लिए विद्या सम्वर्धिनी समिति की स्थापना कराई और उसके वर्षों अध्यक्ष रहे। उसमें एक विशाल कमरा अपनी ओर से निर्माण कराया तथा जूनियर हाई स्कूल की स्थापना कराई जो आज इण्टर कालिज के रूप मे फल-फूल रहा है। कितनी ही धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं से आपका संबंध रहा है। आप राष्ट्रोन्नति के कार्यों में सहयोग देते रहे ।
श्री भगवतस्वरूपजी 'भगवत'
आपका जन्म फरिहा (मैनपुरी) उ.प्र. में संवत् 1967 को श्री चौबे जी जैन के घर हुआ था। आपके पिता बूरे बतासे के प्रसिद्ध व्यापारी थे तथा पद्मावती पुरवाल दि. जैन समाज में आपका पर्याप्त आदर था ।
आपका विवाह सखावतपुर (आगरा) निवासी लाला कनीराम की सुपुत्री श्रीमती महादेवी जी के साथ हुआ था । माता के स्वर्गवास के पश्चात् सारा भार पिताजी के ऊपर आ गया । फलतः व्यापारादि में आपको संलग्न होना पड़ा।
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संवत् 1986 में फिरोजाबाद के मेले के समय श्री पूज्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी महाराज ससंघ फरिहा पधारे। जिनके सत्समागम से आप में धार्मिक भावना जागी और आप अपनी भावनाओं का प्रगटीकरण कविता के माध्यम से करने लगे जो प्रायः 'जैन गजट' और 'खण्डेलवाल जैन हितेच्छु' में प्रकाशित होती रहती थीं। जब आपकी अवस्था 19 वर्ष की थीं, पं. जोखीराम जी शास्त्री की प्रेरणा से फरिहा की बन्द पाठशाला पुनः आरम्भ हुई जहां आपने अपने व्यापार कार्यों को चलाते हुए अध्ययन और आगम का ज्ञान व श्रद्धान प्राप्त किया।
पारिवारिक संताप - आपकी छोटी उम्र में ही पिताजी का देहान्त हो जाने पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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