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________________ विद्वान हैं। उनके द्वारा लिखित, संग्रहीत एवं सम्पादित वरैया, गोलालारे, खरौआ, जैसवाल, बुढेलवाल, विजयवर्गीय आदि समाजों के इतिहास प्रकाशित हो चुके हैं। गोपाचल, मथुरा, सोनागिर, सिंहोनिया आदि जैन तीर्थों के विपुल वैभव पर भी उन्होंने बहुत कुछ लिखा है। जैनगजट परिवार के नियमित सदस्य के नाते हमारा उनसे परोक्ष परिचय एवं पत्राचार तो था, किन्तु साक्षात्कार प्रसंगवश आज से कुछ वर्षों पूर्व ग्वालियर में हुआ । यों ही सहज भाव से हम उनसे यह पूछ बैठे कि आपने इतिहास पर इतना शोध किया है, क्या पद्मावतीपुरवाल जाति के संदर्भ में भी कुछ उल्लेख आपके दृष्टि-पथ में आए हैं? हमें सुखद आश्चर्य हुआ उस समय, जब एक कापी अपनी अलमारी से निकालकर उन्होंने हमारे हाथ में रख दी । इतिहास पर कार्य करते समय पद्मावतीपुरवाल जाति के बारे में जिस-जिस ग्रन्थ, गजेटियर, जैन मूर्तियों आदि पर अंकित प्रशस्तियों आदि में जो भी उल्लेख मिले हैं, वे सब उस कापी में संग्रहीत थे। हमारे अनुरोध पर उन्होंने उसे व्यवस्थित किया । एक कापी के स्थान पर वह सामग्री दो मोटी कापियों तक विस्तृत हो गई। उनके श्रम को हमने प्रणाम किया । हमारी प्रसन्नता को पंख तो उस समय लगे, जब वर्षों की मेहनत से तैयार की गई उस सामग्री को हमारे हाथों में सौंपने में न तो उन्होंने आनाकानी की और न संकोच ही । इस मामले में सभी लेखक इतने उदार नहीं होते । सूम के धन की तरह वे प्रायः अपने श्रम को दूसरों को इतनी आसानी से नहीं सौंपते । इस संदर्भ में कुछ लेखकों के कटु अनुभवों से भी हम परिचित हैं। कुछ लोगों ने दूसरों से मांगकर उनकी रचनाएं प्राप्त तो कर लीं, किन्तु कुछ वर्षों के अन्तराल के बाद उनको अपने नाम से छपवा लिया । ऐसी घटनाओं से किसी भी श्रमजीवी लेखक का चित्त आहत तो होता ही है । उन्होंने हम पर विश्वास किया, इस अनुभूति से हमें बड़ा सुख मिला है। अपने जाति के इतिहास-लेखन का जो आवश्यक एवं गुरुतर कार्य हमें या हमारी पीढ़ी के पुराने या नए विद्वानों में किसी विद्वान को करना चाहिए था, उसे पद्मावतीपुरवाल कुलोत्पन्न न होते हुए भी रामजीत जैन एडवोकेट ने पूरा किया, उससे इस इतिहास का महत्व बढ़ा ही है। हम या हमारे समाज
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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