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86 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण
चार का रंग हरा पाच का रग-नीला छ का रग-बैंगनी सात का रग-जामुनी आठ का रग-दूधिया (सफेद) नो का रग-दूधिया (चामिन)
आशय यह है कि अक्षरा या वर्णों का ही रंग नही होता, अंकों का भी रग होता है। रग से अक्षरो और अको की शक्ति और प्रकृति का बोध होता है।
विन्दु का म्फोट ही ध्वनि है और ध्वनि में जब स्फोट आता है तो शब्द बनता है। ध्वनि स्फोट की अवस्था में जब किसी अग से बिना टकराहट के चली जाती है और सीधी सहस्रार चक्र से जुडती है और एक दिव्य प्रकाश का रूप धारण करती है तो उसे अनहत नाद कहा जाता है। जब वह ध्वनि शरीर के अगो से टकराकर गुजरती है तो वह वर्णात्मक, अक्षरात्मक एव शब्दात्मक हो जाती है।
ध्वनि का वर्ण, अक्षर एव शब्द में ढलने बदलने का अर्थ है उसमे प्रकाश का आना और प्रकाश ग के द्वारा ही प्रकट होता है। प्रकाश विना रग के अभिव्यक्त नहीं हो सकता । माधक अपने सकल्प बल मे ही मन्त्र में उतरता है। वास्तव मे मन्त्र भी तो किसी के सकल्प की एक शब्दात्मक आकृति है। सकल्पके अनुसार विचारो और भावो मे परिवर्तन आता है। यह परिवर्तन-आकृति परिवर्तन-ही मन्त्र का काम है। आपने अनुभव किया होगा लाल रंग के और नीले रग के कमरे में कितना अन्तर है। लाल रग मन को उत्तेजित करता है, भडकाता है, जबकि नीला रंग मन को शान्त करता है, इतना ही नही लाल रंग के कारण वही कमरा छोटा दिखने लगता है जबकि नीले रंग के कारण वही कमरा बडा दिखता है। रग-परिवर्तन भाव परिवर्तन का प्रमुख कारण है।
ध्वनि तरगो का एक स्थान से दूसरे दूरवर्ती स्थान में सम्प्रेषण और धवण त्वरित श्रवण आज विज्ञान के कारण आम आदमी के सामान्य