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________________ णमोकार मन्त्र और रग विज्ञान / 87. जीवन के अनुभव की बात हो गयी है। किन्तु आकृति और दृश्यों का अवतरण एवं सम्प्रेषण भी कैमरा, एक्सरे और टेलीविजन जैसे यन्त्रों से कितना सुगम हो गया है, यह तथ्य भी सभी को ज्ञात है। कम्प्यूटर से तो अब आदमी की मानसिकता का भी सही पता लगने लगा है। यदि सूर्य के प्रकाश को त्रिपार्श्व (तिकोना शीशा, Prism) से सम्प्रेषित किया जाए तो उसका (प्रकाश) विश्लेषण हो जाता है। ऐसी प्रक्रिया में सूर्य बिल्कुल नये रूप मे प्रकट होता है। इसमे हमें सात रग दिखाई देते है। किसी वस्तु पर यह प्रकाश विकीर्ण करने पर ये सातों रंग स्पष्ट हो जाते है। इस विश्लेषित प्रकाश को हम स्पेक्ट्रम कहते हैं। इस विश्लेषण का प्रकारान्तर यह हुआ कि यदि उक्त सात रगों को (बैगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला नारगी, लाल) मिश्रित कर दें तो सफेद रग बनेगा। रंगों अथवा रंगीन किरणों के गुण : लाल, नीला और पीला ये तीन प्रधान रंग है । अन्य रंग इनके भिन्न-भिन्न आनुपातिक मिश्रणो से बनते हैं । इन रंगो का मुख, समृद्धि और चिकित्सा के क्षेत्र मे बहुत महत्त्व है। लाल प्रकाश या रग धमनी के रक्त (लाल) को उत्तेजित करता है। कुछ नारगी और पीला प्रकाश नाडियों को उत्तेजित करता है। इन नाडियो में यही रंग होता है। नीला रग धमनी के रक्त को शान्त करता है, किन्तु यही शिराओ के रक्त को तेज भी करता है। कभी-कभी विपरीत रगो के प्रयोग से असन्तुलन दूर होता है। सिर मे रक्त और नाडियों की प्रधानता है, सन्तुलन के लिए नीले और बैगनी रग से लाभ होता है। हाथ-पैरो के दर्द आदि के लिए लाल रग उत्तम है । मासिक धर्म की अधिकता में नीला, पीलिया मे पीला रग उपयोगी है। लाल रग . लाल रग मे गर्मी होती है। नाडियो को उत्तेजित करना इसकी विशिष्ट प्रवृत्ति है। चोट या मोच में इसका प्रयोग होता है। यौन दौर्बल्य (Sexual weakness) मे इसका अद्भुत प्रभाव होता है। नारगी । यह रग भी उष्णता देता है । दर्द को दूर करने में यह सफल
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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