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________________ मन्त्र और मन्त्रविज्ञान / 25 1 पुरुष मन्त्र, स्त्री मन्त्र, नपुसक मन्त्र । 2. सिद्ध, साध्य, सुसिद्ध, अरि मन्त्र । 3 पिण्ड, कर्तरी, बीज, माला मन्त्र । 4 सात्विक, राजस, तामस । 5 साबर, डामर । पुरुष मन्त्र उन्हे कहते है जिनका देवता पुरुष होता है। पुरुष देवता के मन्त्र सौर कहलाते है और स्त्री देवता से सम्बन्ध रखने वाले मन्त्र सौम्य । जिन मन्त्री का देवता स्त्री होती है उन्हे विद्या कहते है । मामान्यतया तो सभी को मन्त्र ही कहा जाता है ।" जिन मन्त्रो के अन्त में 'हु' और फट् ' रहता है उन्हे पु० मन्त्र, और दो रू इस वर्ण से जिस मन्त्र की समाप्ति हो उसे स्त्री मन्त्र कहते है । नमः से समाप्त होने बाले मन्त्र नपुंसक मन्त्र कहलाते है । 'प्रयोगसार' का मत इससे कुछ भिन्न है । उनके अनुसार वषट् और फट् से समाप्त होने वाले मन्त्रों को पुरुष, वौषट् और स्वाहा से स्त्री तथा 'हु' नम से समाप्त होने वाले मन्त्रो को नपुंसक कहा गया है। एक अक्षरी मन्त्र पिण्ड मन्त्र, दो अक्षरो वाले कर्तरी मन्त्र और तीन से लेकर नौ वर्गों तक के मन्त्र बीज मन्त्र कहलाते है | इससे बीस वर्ण पर्यन्त के मन्त्र, मन्त्र के ही नाम से जाने जाते है । इससे अधिक वर्ण संख्या वाले मन्त्र माला मन्त्र कहलाते है । इनके अतिरिक्त मन्त्रों के छिन्न, उद्ध, शक्तिहीन आदि शताधिक अन्य भेद भी होते है । ये सभी यहा प्रासंगिक नही है । उक्त विवरण केवल तुलनार्थ एव ज्ञानार्थ उद्धृत किया गया है । मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र- इन तीनो की सानुपातिक सयुक्त क्रिया ही किसी साधक को पूर्णता तक पहुचाती है। केवल मन्त्र की साधना 1 मौरा पु० देवता मन्त्रास्ते च मन्त्रा प्रकीर्तिता । सौम्या स्त्रीदेवतास्तद्द्वद्विद्यास्ते इति विश्रुत ॥ (शारदा तिलक - राघवी टीका पू० 79 ) 2 पुस्त्री नपुसकात्मानो मन्त्राः सर्वे समीरिता । मन्त्रा पुदेवता ज्ञेया विद्या स्त्रोदेवता स्मृता 115811 , (शारदा तिलक तन्त्र 2 पटल ) 3 पु० मन्त्राः हुम्फडान्ता स्यु द्विठान्ताश्च स्त्रियो मता । नपुसका नमोऽताः स्युरित्युक्ताः मन्त्रास्त्रिधा 158 11 वही
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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