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26 / महामन्त्र णमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण
से आशिक लाभ ही होगा । मन्त्र कुछ विशिष्ट परम प्रभावी शब्दो से निर्मित वाक्य होता है । कभी-कभी यह केवल शब्द मात्र ही होता है । यन्त्र वह पात्र (धातु निर्मित, पत्र या कागज ) है जिसमे सिद्ध मन्त्र
कित, अकित या वेष्टित रहता है । यह एक साधन है । तन्त्र का अर्थ है विस्तार करने वाला अर्थात् मन्त्र की शक्ति को रासायनिक प्रक्रिया जैसा विस्तार एव चमत्कार देने वाला । मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र ये तीनो भीतर से बाहर आने की प्रक्रिया हैं - बिन्दु के सिन्धु मे बदलने का क्रम है । मन मे स्थित मन्त्र मुख मे आकर यन्त्रस्थ हो जाता है और वाणी मे प्रस्फुटित होकर ( तन्त्रित होकर) मुद्रित प्रकाशित हो जाता है ।
सम्पूर्ण मन्त्रों की सख्या सात करोड मानी गयी है । वैदिक परम्परा के अनुसार सभी मन्त्र शिव और शक्ति द्वारा कीलित है ! बौद्ध परम्परा मे भी मन्त्रों का और तन्त्रों का सुदीर्घ चक्र है। जैन शास्त्रों में मन्त्रों की अति प्राचीन एवं विशाल परम्परा है । मन्त्रकल्प, प्रतिष्ठाकल्प, चक्रेश्वरीकल्प, ज्वालामालिनीकल्प, पद्मावतीकल्प, सूरिमलकल्प, वाग्वादिनीकल्प, श्रीविद्याकल्प, वर्द्धमानविद्याकल्प रोगापहारिणीकल्प आदि अनेक कल्प ग्रन्थ है । ये सभी मन्त्र एवं तन्व प्रधान ग्रन्थ है |
मन्त्र शास्त्रों में तीन मार्गों का उल्लेख है । ये हैं- दक्षिण मार्ग, वाम मार्ग और मिश्र मार्ग । दक्षिण मार्ग - सात्विक देवता की सात्विक उद्देश्य से और सात्विक उपकरणों से की गई उपासना दक्षिण उपासना या सात्विक उपासना कहलाती है । वाम मार्ग - पच मकार - मदिरा, मांस, मैथुन, मत्स्य, मुद्रा - इनके आधार पर भैरवी चक्रों की योजना होती थी । मिश्र मार्ग - इसके अन्तर्गत परोक्ष रूप से पंचमकारो को तथा दक्षिण मार्ग की उपासना पद्धति को स्वीकार किया गया है । वास्तव में यह मार्ग व्यर्थ ही रहा । मार्ग तो दो ही रहे । मन्त्र शास्त्र मे प्रमुख तीन सम्प्रदाय है - केरल, काश्मीर और गौण । वैदिक परम्परा केरल - सम्प्रदाय के आधार पर चली । बौद्धों में गौड सम्प्रदाय का प्रभाव रहा। जैनो का अपना स्वतन्त्र मन्त्र शास्त्र है परन्तु काश्मीर परम्परा का जैनो पर व्यापक प्रभाव है ।
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मन्त्र मे स्वरूप विवेचन से यह बात सुस्पष्ट है कि मन्त्र, अर्थ और शब्द के संश्लिष्ट माध्यम से हमें अध्यात्म मे ले जाता है अर्थात्