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योग और मन के सन्दर्भ में णमोकार मन्त्र / 115
प्रमुख सात चक्र हैं
चक्र
1 मूलाधार चक्र 2 स्वाधिष्ठान चक्र
3 मणिपुर चक्र
4 अनाहत चक्र 5 विशुद्ध चक्र
6 आज्ञा चक्र
7 सहस्त्रार चक्र
स्थान
मेरुदड के नीचे मूल
गुप्ताग के ऊपर
नाभिक के ऊपर
में
हृदय के ऊपर कठ में
दोनो भौंहों के नीचे मस्तक के ऊपर
मुख छिद्र में दिव्य
ये च सदैव क्रियाशील रहते हैं और अपने शक्ति ( प्रणावायु) भरते रहते हैं । इस शक्ति के अभाव मे स्थूल शरीर जीवित नही रह सकता ।
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कुण्डलिनी -स्वरूप, क्रिया और शक्ति - यह मानव-मानवी के मेरुदण्ड के नीचे विद्यमान एक विकासशील शक्ति है। यही जीवन का मूलाधार है । यह हमारी रीढ के नीचे सुषुप्त अवस्था मे पड़ी रहती है । इसको ठीक समझने और उपयोग करने की शक्ति प्रायः मानव मे नहीं होती है । यह शक्ति लाभकारी भी है और नाशकारी भी । यदि पूर्ण जानकारी न हो तो इसे न छेडना ही उचित है । अनेक मनुष्यों में कभीअद्भुत अतिमानवीय एव अति प्राकृतिक देवी एव दानवी क्रियाएं देखी जाती है । यह सब अज्ञात रूप से जागी हुई कुण्डलिनी का ही कार्य है - आशिक कार्य है । कुण्डलिनी जागरण मे बहुत-सी बातें घटित होती हैं जैसे सोते-सोते चलना, रात्रि में स्वप्न दर्शन, अतिनिद्रा एवं अनिद्रा | किसी समस्या का त्वरित समाधान मस्तिष्क मे बिजली की तरह कौध जाना भी इसका ही चमत्कार है । मूलाधार मे शक्ति संग्रहीत होती है । वही से सम्पूर्ण चक्रों मे वितरित होती है। पृथ्वी और सूर्य के केन्द्रो से हम शक्ति-संग्रह करके मूलाधार में भरते है । इसी शक्ति को चक्रों की उत्तेजना के लिए वितरित भी करते हैं । कुण्डलिनी जागृत होने पर बर्फी की नोक की तरह ऊपर को चढ़ती हुई अन्ततः जीवात्मा में प्रवेश करती है और लोकोत्तर चैतन्य उत्पन्न करती है । कुण्डलिनी जागरण के प्रभाव के सम्बन्ध में अनेक ऋषियो, सन्तों एवं