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14141 महामन्त्र गमोकार . एक वैज्ञानिक अन्वेषण
। ध्यान देते हैं। ये सारी काम शक्ति को ओज धातु मे परिणत करते हैं ।
कामजयी स्त्रीपुरुष ही इस ओज धातु को मस्तिष्क मे सचित कर सकते हैं। यही कारण है कि समस्त देशो में ब्रह्मचर्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। स्पष्ट है कि णमोकार मन्त्र के साधक मे ब्रह्मचार्य पालन भी पूर्ण शक्ति आवश्यक ही नही, अनिवार्य है। कुडलिनी जागरण और आध्यात्मिक साक्षात्कार ब्रह्मचर्य पालन पर आधत है । मन्त्र शक्ति का प्रस्फुटन कामी व्यक्ति मे नही हो सकता।
योग साधना और मन्त्र साधना कामजयी व्यक्ति ही कर सकता है। योग मे कामजय सभव है और कामजयी को मन्त्र सिद्धि सभव है। काम समस्त अनर्थो का मूल है--
"विषयासक्तचित्तानां गुणः कोवा न नश्यति ।
न वैदुष्य न मानुष्यं नाभिजात्य न सत्यवाक् ॥ अर्थात् विषयी-कामी पुरुषो का कौन-सा गुण नष्ट नही होता? सभी गुण ध्वस्त हो जाते हैं । वैदुष्य, मानुष्य, आभिजात्य एव सत्यवाक् आदि सभी गुण नष्ट हो जाते है और गुण हीन व्यक्ति शव ही है। योग की सम्पूर्णता के लिए और उसकी मन्त्र सम्बद्धता के लिए शरीर की भीतरी रचना की जानकारी और उपयोगिता परमावश्यक है।
योग और शरीर चक्र--मनुप्य स्थल शरीर तक ही सीमित नहीं है। वह सूक्ष्म शरीर एव स्वप्न शरीर आदि भेदो से आगे बढ़ता हुआ समाधि को ओर गतिशील हो जाता है। शरीर के इन सभी रूपो को पाच शरीर भी कहा गया है । अन्नमय शरीर, प्राणमय शरीर, मनोमय शरीर, विज्ञानमय शरीर और आनन्दमय शरीर । इन शरीरो को कोश भी कहा गया है। इसी प्रकार औदारिक, वैक्रियक, तेजस, आहारक एव कार्माण के रूप मे जैन शास्त्रो में शरीर भेदो का वर्णन है। इनसे परे आत्मा है । इन शरीरो की ऊपरी सतह पर ईथर शरीर (आकाश-वायु शरीर) है। ईथर के भण्डार स्थान शरीर चक्र कहलाते हैं। ये चक्र ईथर शरीर के ऊपर रहते है। प्रत्येक चक्ररूपी फल मेरूदण्ड (रीढ) के पिछले भाग से अलग-अलग स्थान से प्रकट होता है। मेरूदण्ड से (पीठ की तरफ से) चक्र-रूपी पुप्प निकलकर ईथर शरीर की ऊपरी सतह पर खिलते है।