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णमोकार मन्त्र और रंग विज्ञान | 97 या पदार्थ के शक्ति-व्यूह को उसके गुणों को, उसकी वैयक्तिकता को पहिचाना गया । क्रम रहा-वस्तु से ध्वनि, ध्वनि से तत्त्व, तत्त्व से शवित-व्यूह, शक्ति व्यूह से भावना और विचार इसी प्रकार वर्ण किस तत्त्व को प्रभावित करता है, वह किस शक्ति-व्यह (ElectricCurrent) को पकड रहा है, इसको खोजा गया परिणामतः प्रत्येक वर्ण को उसके विशिष्ट तत्त्व से जोड़ दिया गया।
जहां तक इन वर्गों की आकृति का सम्बन्ध है यह पहले ही कहा जा चका है कि हर ध्वनि आकृति को पैदा करती है। ध्वनि और आकृति सम्बन्ध वैसा ही है जैसा कि शरीर और शरीर की छाया का। जब हम शब्दो को बोलते हैं तो उनकी आकृति आकाश में उसी तरह अकित होती चली जाती है जैसी कि फोटो लेते समय फोटो की विषयवस्तु का चित्र कैमरे के प्लेट पर अंकित हो जाता है। ध्वनियो की इन अकित आकृतियों को प्राचीन ऋषियो ने आकाश में देखा है । अ, आ, इ, ई आदि स्वर कैमे बने एव अन्य व्यजन कैसे बने ? इनके पीछे जो कहानी है वह उच्चारण आकृति और प्रतिलिपि की कहानी है। सस्कृत और प्राकृत भाषा मे यह प्रयोग अत्यन्त सरलता से किया जा सकता है। स्पष्ट है कि इस लिखी गयी आकृति मे और आकाश पर अकित आकृति मे अद्भुत साम्य है। ___ आज विज्ञान के प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि ध्वनि को प्रकाश में वदला जा सकता है। विभिन्न प्रकम्पन आवृत्ति (Frequencies) मे प्रवृत्त होने वाला प्रकाश ही रंग है। प्रकाश, रंग एव ध्वनि पथक-प्रथक तत्व नही है अपितु एक ही तत्त्व के अलग-अलग पर्याय या प्रकार है । इनमें से किसी एक के माध्यम से अन्य दो को प्राप्त किया जा सकता है।
रग का जगत हमारे मानसिक और बाह्य जगत को सफलतापूर्वक प्रभावित कर सकता है। रूस की एक अन्धी महिला हाथों से रगो को छूकर उनसे उत्पन्न होने वाले भावो का अनुभव कर लेती थी। वह थोड़ी ही देर मे उन रंगों का नाम भी बता देती थी। लाल रग की वस्तु को छूने पर उसे गरमाहट का अनुभव होता था। हरे रंग का स्पर्श करते ही उसे प्रसन्नता का अनुभव होता था। नीले रंग की वस्तु को छूने पर उसे ऊचाई और विस्तार का अनुभव होता था । मन्त्र और