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रुपसुंदरी .
अमरीओ उपर न चढावीश व्हारी आवी वर्तणुकथी म्हारो निश्चय भंग थतो नथी, परंतु मन टूटी जाय छे. हारा आ वाक्महारथी म्हाग हृदयनो चूरेचूरो थई जाय छे. परंतु म्हारो प्रेम ! छः, ते लेशमात्र पण भंग थनार नथी अने
नो भंग करवानुं सामर्थ्य व्हारामां तो शुं, परंतु जगत्मांना कोईपण माणसमां नथी. म्हारा शब्दो म्हारा हृदयना ऊंडा प्रदेशमाथी नीकळे छे, आ म्हारा अंतःकरणनी भाषा छे अने म्हारा आ अभंगप्रेमनी साक्षी एटले म्हारी सर्व संपत्ति अने म्हारो देह पण आज रहने समर्पण करूं छं. केम ! हजु पण म्हारा प्रेमनी रहने खातरी थाय छे के नहीं ? हजु पण व्हारो गुस्सो समाय छे के नहीं ? हजु पण हुं त्हारा प्रेमनो पात्र थयो लुं के नहीं ? नहीं ! नहीं! रुपसुंदरी आज हुं रहने म्हारा उपर आवी अप्रसन्न रहेवा दईश नहीं. म्हारी आ एकनिष्ट भक्ति थी किंवा पूजाद्रव्यथी म्हारो हृदयदेवता पण प्रसन्न थाय नहीं तो आज में ते पाछळ पोताना प्राणने पण • बळी करवानो निश्चय कर्यो छे अने आ जो व्हेनो आरंभ - "
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आटलं बोली व्हेणे पोताना फेंटानो फांसो पोताना गळामां नांख्यो अने हवे ते जोरथी खेचवानी तैयारीमां छे एटकामां ते तरुणी व्हेना बन्ने हाथ जोरथी पकडी बोली :
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सबूर! सबूर ! देवदत्त, आवुं साहस न करो ! हमारा प्रेमना परीक्षा जोवा माटेज हुं हमाराथी क्षणभर आवी