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एक सूत्र
हिंसा से बचने के लिये भारतीय मनीषियों ने एक सूत्र और भी दिया है।
"आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् । "
'दूसरे के द्वारा किया हुआ जो भी कार्य और व्यवहार आप अपने लिए अप्रिय समझते है, वह कार्य व व्यवहार आप दूसरो के प्रति भी नही करे।'
यदि आप चाहते हैं कि कोई भी व्यक्ति आपको शारीरिक व मानसिक कष्ट न दे, आपको कटु वचन न बोले, तो आप स्वय भी दूसरो के साथ ऐसा व्यवहार न
करें ।
यदि आप चाहते हैं कि कोई भी व्यक्ति आपके साथ धोखा, बेईमानी और विश्वासघात न करे तो आप भी किसी के साथ ऐसा व्यवहार न करे ।
यदि आप यह चाहते हैं कि कोई भी व्यक्ति आपको मिलावटी व नकली वस्तु न दे, आपको कम तौल कर व कम नाप कर 'दे, आपसे अनुचित लाभ न ले तो आप भी किसी के साथ ऐसा व्यवहार न करे ।
यदि कोई व्यक्ति आपकी बहिन, बेटी की बेइज्जती और बेहुरमती करता है तो आपको बुरा लगता है तो आपको भी चाहिए कि दूसरो की बहिन-बेटियो को समुचित सम्मान दे |
दूसरे के प्रति व्यवहार करते समय यदि हम अपने व्यवहार को इस कसौटी पर कस लें तो हम बहुत-सी अनावश्यक हिसा से बच जायेंगे और इस ससार से बहुत सी बुराइया स्वयमेव ही दूर हो जायेंगी ।
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