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ही कई अन्य भ्रान्तियां भी मासाहार के पक्ष में फैली हुई हैं।
इन सबको दृष्टि में रखते हुए बहुत दिनो से हृदय में यह भावना थी कि एक छोटी सी पुस्तिका प्रकाशित की जाये, जिसमे मासाहार के विरुद्ध वैज्ञानिक व तर्कसम्मत विवेचन हो, क्योकि आज के नवयुवकों पर धर्म की अपेक्षा विज्ञान व तर्क के आधार पर कही हुई बात का अधिक प्रभाव पड़ता है। इन्हीं तथ्यो को दृष्टि मे रखकर यह छोटा सा प्रयास किया है।
मासाहार और हिंसा का चोली दामन का सा साथ है, इसलिये इस पुस्तक में हिंसा व अहिंसा की विवेचना भी की गई है।
पिछले २,५०० वर्षों की अवधि में भगवान महावीर अहिंसा के सबसे बडे पालक व प्रचारक हुए हैं, अत भगवान महावीर के सम्बन्ध में भी सक्षेप में कुछ लिखा गया है जिसके बिना यह पुस्तक अपूर्ण ही रहती। ___मैं कोई साहित्यिक विद्वान अथवा सिद्धहस्त लेखक नहीं हूं, इसलिये यह कोई साहित्यिक कृति नहीं है। जैसा मैंने देखा, समझा और ठीक जाना है, उसी को अपनी भाषा मे लिख दिया है। कह नहीं सकता कि मेरा यह प्रयास कहा तक सफल होगा? फिर भी यदि थोडे से नवयुवकों के भी मासाहार व हिंसा के सम्बन्ध में उनके विचार परिवर्तन करने मे यह पुस्तक सहायक हुई तो मैं अपने प्रयास को सफल समझूगा।