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और उनका रूप-रग सुन्दर बनाने के लिये हो हमे इन खाद्य पदार्थों को विकृत नहीं करना चाहिए । अग्नि पर पकाने और उनमे घी, मसाले व रग डालने से खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और वे केवल जले हुए कोयले के समान रह जाते है । अपनी प्रकृति, रुचि व मौसम के अनुकूल हमको अधिक-से-अधिक मात्रा मे फलो व सब्जियों का सेवन करना चाहिए। जो फल व सब्जी अपनी प्राकृतिक दशा मे ही खाई जा सके उनको न तो पकाना चाहिए और न उनमे मसाले डालने चाहिए ।
मास, अण्डा तथा मदिरा, अफीम, चरस, भग जैसे मादक द्रव्य और बोडी, सिगरेट, हुक्के आदि का सेवन तो हमें भूलकर भी नही करना चाहिए। ये सब पदार्थ इनके सेवन करने वालो के विवेक को हरने के साथ-साथ उनको अनेको रोग लगा देते है । इनके सेवन से हिंसा का दोष तो लगता ही है । इसी प्रकार पुराने अचार, मुरब्बे, खमीरे तथा शहद, आसव, सिर्का, पनीर, खमीर, कई दिनो की बासी मिठाई आदि पदार्थ भी हमे नहीं खाने चाहिए। क्योकि इन पदार्थों में निरन्तर ही सूक्ष्म जीवो की उत्पत्ति होती रहती है। ये सूक्ष्म जीव चाहे आखो से दिखाई न दे, परन्तु यदि बहुत शक्तिशाली सूक्ष्मवीक्षण यन्त्र से देखें तो ये जीव हमको दिखाई दे जायेगे। इसलिए इन पदार्थों के सेवन से हिंसा का दोष लगता है और कभी-कभी ये हमारे स्वास्थ्य को हानि भी पहुचा देते हैं ।
हमको बनस्पति घी का प्रयोग बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। यह मनुष्यो के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। तेलो के रंग और उनकी गन्ध दूर करने के लिए तथा उनको जमाने के लिए जो रसायन इन तेलो में मिलाये जाते
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