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लिखा है कि मांस पशु-पक्षियो को तडपाकर मारने पर मिलता है। जब पशु-पक्षियो को निर्दयता से मारा जाता है तब वह तडपते हैं, दुखी होते हैं और भयभीत होते हैं। ये बुरी भावनाए उनके शरीर में रासायनिक परिवर्तन करके उनके मास व खून को अम्लोत्पादक बना देती हैं। इसके अतिरिक्त मरे हुए पशुओ की रक्तनली के विषैले पदार्थ प्रोटीन को गन्दा कर देते है। डाक्टर साहब आगे लिखते हैं कि उन्होने मरे हुए व मारे हुए पशुओ के मृत शरीरो को Microscope से देखा है, जिससे मालूम पडा है कि उनकी बडी आतें विषेले कीटाणुओ से भरी पड़ी हैं। मास को उबालने पर भी खुर्दबीन से परीक्षण करने पर उसमे बहुत सारे भयकर कीटाणु पाये गये, जो शरीर मे सैकडो बीमारिया पैदा करते हैं। इसलिए शुद्ध व बढिया प्रोटीन तो दालो, अनाजो व दूध मे ही पाया जाता है।
यहा एक बात और विचारणीय है। मासाहारी व्यक्ति केवल शाकाहारी पशुओ-यथा भेड, बकरी, गाय, ऊट, मछली, मुर्गे आदि का ही मास खाते है। मासाहारी पशुबो-यथा शेर, चीते, भेडिये आदि का मास कोई नही खाता, क्योकि इन मासाहारी पशुओ का मास विषैला होता है। इस तथ्य से भी यह स्पष्ट है कि मासाहार हमारे शरीर मे विष पैदा करता है, जबकि शाकाहार हमारे शरीर को शुद्ध रखता है। ____ 'वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन' की विशेष समिति ने सर्वेक्षण द्वारा यह निष्कर्ष निकाला है कि २२ विकसित
और समृद्ध देशो मे जहा कि मुख्य रूप से मासाहार किया जाता है, प्रति एक लाख व्यक्तियो मे ४०० से अधिक व्यक्ति हृदय रोगो से मरते हैं। यह संख्या फिनलैण्ड में सबसे
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