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अधिक अर्थात् ४२२ है, जबकि एशियाई देशो में अपेक्षाकृत बहुत कम है। जापान में १ लाख व्यक्तियो मे सिर्फ ५१ व्यक्ति हृदय रोगो से मरते हैं। सौभाग्य से यह सख्या भारत में अभी ४२ तक ही पहुची है और निश्चय ही इसका श्रेय भारत की शाकाहारी पद्धति को है।
इन कारणों के अतिरिक्त सर्वेक्षणो से यह तथ्य भी प्रकाश में आया है कि जिन विकसित और समृद्ध देशो में जितनी अधिक मोटर कारें हैं और वहा के निवासी जितनी अधिक सिगरेट पीते हैं, दिल के दौरे के रोगी वहा उतने ही अधिक हैं।
जर्मन के एक प्रसिद्ध विद्वान मि० हैकल ने लिखा है कि जहा तक परीक्षा से मालूम हुआ है मनुष्य और वनमानुष के शरीर की बनावट आपस मे मिलती है। हमारे शरीर की भाति उसके भी हड्डियां व नसें होती हैं। मनुष्य के आमाशय मे पाचन क्रिया के लिए जो विशेषता पाई जाती है वही वनमानुष मे भी होती है। बनमानुष फल
और शाक-सब्जी खाते है अत मनुष्य का भी यही आहार होना चाहिए। इसी कारण मनुष्य प्राकृतिक रूप से शाकाहारी है, मासाहारी नहीं।
फ्रास के प्रसिद्ध विद्वान् श्री पियर गेसेण्डी का कहना है कि मनुष्य के जीवन का पूर्ण अध्ययन करने के पश्चात् मैं यह निर्णय दे सकता हूँ कि मनुष्य शाकाहारी प्राणी है।
बहुत से अन्य विद्वानो, डाक्टरो, वैज्ञानिको तथा शरीर-शास्त्र के ज्ञाताओ ने विचार व्यक्त किए हैं कि मनुष्य के दाँत, नाखून, शारीरिक ढाचा, जबड़ा, आतें तथा पाचन यन्त्र और उसके खाने-पीने के ढम को देखकर निर्विवाद कहा जा सकता है कि मनुष्य शाकाहारी प्राणी