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किया है। इन साधनो का उपयोग करने के बजाय कुछ व्यक्ति अनाज की कमी का बहाना बनाकर, सरल उपाय होने के कारण, मासाहार को प्रोत्साहन देते रहते हैं।
एक बात और है । मास प्राप्त करने के लिए जो पशुपक्षी पाले जाते हैं वे भी अनाज व घास आदि वनस्पतिक पदार्थ खाकर बढ़ते हैं। उनको खिलाने के लिए भी हमको घास व अनाज उत्पन्न करना पडता है। इस बात मे क्या तुक है कि पहले तो भूमि मे घास व अन्य खाद्य पदार्थ उत्पन्न करके इन पशुओ को खिलाये और फिर उनका वध करके उनका मास हम स्वय खाये । वैज्ञानिको ने आकडो के द्वारा सिद्ध किया है कि जितनी भूमि पर पशुओ को पालकर हम उनका मास प्राप्त करते है, उतनी ही भूमि पर यदि हम अपने खाने योग्य अनाज उत्पन्न करे तो हम उनके मास की अपेक्षा बहुत अधिक मात्रा मे अनाज प्राप्त कर सकते है।
(५) मासाहार के पक्ष मे एक तर्क यह भी दिया जाता है कि मासाहार से हम बलवान और बहादुर बनते है ।
यह तर्क भी ठीक नहीं है। मास व अण्डो और अन्य अनाजो, फलो व मेवो आदि मे कितनी-कितनी शक्ति होती है, इसका चार्ट हम पुस्तक के अन्त मे दे रहे हैं। इस चार्ट को देखने से पता चल जाता है कि मास व अण्डो मे अनाज व अन्य वनस्पतिक खाद्यो से अधिक शक्ति नहीं होती। हाथी, घोडा, बैल, भैसा, ऊट आदि भारी काम करने वाले पशु सब अपनी शक्ति वनस्पतिक खाद्यो से ही प्राप्त करते हैं। मनुष्यो मे भी शाकाहारी व्यक्ति मासाहारियो से निर्बल नहीं होते।
जहा तक मासाहार द्वारा बहादुर बनने की धारणा है १२८