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है। बिजली का कृत्रिम प्रकाश भी इन कीटाणुओ की वृद्धि को नही रोक सकता ।
बहुतेरे कीडे ऐसे होते हैं, जो दिन मे तो अधेरे कोनो मे छिपे रहते हैं, परन्तु रात को उन कोनो से निकल कर वे उछल-कूद करने लगते है। रात्रि मे भोजन बनाते और भोजन खाते समय ऐसे कीडे और रात्रि को ही उत्पन्न होने वाले अन्य कीडे, पतगे व कीटाणु हमारे भोजन मे गिर पडते है और भोजन को विषैला बना देते हैं । समाचार-पत्रो मे इस प्रकार विषैले हए भोजन खाने से हुई मृत्युओ के समाचार हम प्राय पढते ही रहते हैं ।
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स्वास्थ्य की दृष्टि से भी देखा जाये तो हमे अपना भोजन सोने से तीन-चार घण्टे पूर्व ही कर लेना चाहिए, जिससे कि सोने के समय तक हमारा किया हुआ भोजन हजम हो जाये । यदि सोने के समय तक भोजन हजम नही होता तो वह आमाशय मे पडा सडता रहता है और रोग उत्पन्न करता है । आजकल पेट की बीमारियो के बढने का मुख्य कारण यह रात्रि भोजन ही है । यदि हम रात्रि को भोजन न करके दिन मे ही भोजन कर लिया करे तो पेट मे होने वाले कम से कम नब्बे प्रतिशत रोग उत्पन्न ही न हो । यदि कोई सस्था रात्रि भोजन व मासाहार के आधार पर रोगियो का सर्वेक्षण करे तो हमे पूर्ण विश्वास है कि मासाहार व रात्रि भोजन करने वाले और शाकाहार व दिवा भोजन करने वाले रोगियो का अनुपात कम से कम बीस व एक का अवश्य होगा ।
यदि पशु-पक्षियो को दिन के समय भूखा न रखा गया हो तो वे रात को कभी नही खाते । इससे स्पष्ट है कि प्राकृतिक रूप से भी रात्रि भोजन उचित नही है ।
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