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ही पाप क्यों न किये हो ?
कुछ व्यक्ति धर्म परिवर्तन कराने के लिए और अपना धर्म फैलाने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। उनका न्याय और सिद्धान्त यही है कि किसी व्यक्ति को जीना है तो उनका धर्म अगीकार करके जिए अन्यथा विधर्मियो को जीने का अधिकार ही नही है । तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन कराने को वह धार्मिक कृत्य मानते हैं । इस प्रकार धर्म परिवर्तन कराने में कितना धर्म होता है, यह तो इस प्रकार धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति ही जानें परन्तु कोई भी विवेकशील व्यक्ति इस बात का समर्थन नही करेगा।
अब से ढाई-तीन सौ वर्ष पहले तक यूरोप मे ईसाई धर्म को ही मानने वाले दो सम्प्रदायो Catholics और Protestants मे कितने भयंकर युद्ध हुए हैं और एक सम्प्रदाय वाले व्यक्तियो ने दूसरे सम्प्रदाय वाले व्यक्तियो पर कैसे-कैसे अमानुषिक अत्याचार किये है, इसको इतिहास के विद्यार्थी भली प्रकार जानते हैं। क्या कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति इन युद्धो को उचित बता सकता है ? इस प्रकार धर्म के नाम पर रक्तपात करने से धर्म की कितनी हानि हुई है, यह इन धर्मान्ध व्यक्तियो को नही मालूम । आज के नवयुवक धर्म के नाम पर इसी प्रकार के रक्तपात को देखकर धर्म से विमुख होते जा रहे हैं ।
इन तथ्यो पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने से यही पता चलता है कि किन्ही व्यक्तियो ने अपनी दूषित मनोवृत्ति की तुष्टि के लिए अर्थ के अनर्थ कर दिये हैं । वास्तव में बलि देने और कुर्बानी देने का तात्पर्यं तो यही है कि अपनी दुर्भावनाओं की, अपनी झूठी माया-ममता की, अपनी