________________
हा, इतना अवश्य है कि मरते समय जिस पशु को इतनी शारीरिक पीडा हो रही हो उसके हृदय मे न जाने कितनी तीव्र दुर्भावनाए उत्पन्न हो रही होगी? क्या हृदय मे तीव्र दुर्भावनाए लेकर मरने वाला कोई भी जीव स्वर्ग जा सकता है ? एक बात और, यदि स्वर्ग प्राप्त करने का मार्ग इतना सीधा व सरल है तो मनुष्य स्वर्ग प्राप्त करने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या क्यो करते हैं ? भगवान की बेदी पर अपनी ही बलि चढवा दिया करें, कुछ क्षणो का कष्ट है, फिर तो अनन्तकाल तक सुख ही सुख है।
कुछ समय पहले तक वाराणसी में कुछ स्वार्थी पण्डे, अन्धश्रद्धालु व धर्मान्ध व्यक्तियो को उनकी अपनी ही इच्छानुसार काट कर गगा जी मे बहा देते थे। इन दुष्ट पण्डो ने यह विश्वास फैला रखा था कि इस प्रकार प्राण देने वाला व्यक्ति सीधा 'स्वर्ग' जाता है। क्या स्वर्ग का यही मार्ग है ?
राजपूत काल मे और उससे भी पहले सैकडो वर्षों तक मृतक पुरुष के साथ उसकी विधवा पत्नी को भी जीवित जला दिया जाता था। यह सती प्रथा कहलाती थी। कुछ विधवाए तो स्वेच्छा से ही पति के साथ सती हो जाती थी, जबकि बहुत-सी विधवाओ को बलपूर्वक उनके मृत पतियो की चिताओ मे बाध कर जला दिया जाता था। इन विधवाओ को यही समझाया जाता था कि इस प्रकार सती होने से वे स्वर्ग मे जायेगी और अपने स्वर्गवासी पति की, जो स्वर्ग मे उनकी राह देख रहे है, फिर से पत्नी बन जायेंगी । इस मान्यता मे कितनी सच्चाई है, इसको कोई भी विवेकशील व्यक्ति समझ सकता है ? क्या सारे पति मर कर स्वर्ग मे ही जाते हैं, चाहे जीवन में उन्होंने कितने