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मार्जार - बिल्ली, अगस्त्य वृक्ष, हिंगोरी वृक्ष, बिदारी कन्द, लवग |
वराह - सूअर, नागरमोथा ।
इसी प्रकार के और भी अनेको शब्द हैं, जिनका सकलन 'अमरकोश', 'विश्वप्रकाश', 'अनेकार्थं सग्रह' आदि कोशो में दिखलाई पडता है। एक शब्द के कई अर्थ होने से लोगो मे किसी शब्द के बारे मे भ्रम हो जाना स्वाभाविक है | वास्तव मे किसी शब्द का अर्थ प्रसग के अनुसार लगाना चाहिए। कही कही ऐसा भी है कि मनुष्य की दुर्भावना, कुविचार, छल-कपट, अहकार आदि की मनोवृत्ति को सूचित करने के लिए पशु के नाम से पुकारा गया है। ऐसे मन्त्रो का तात्पर्य यही है कि व्यक्ति के अन्दर जो कुविचार, दुर्भावना व पशुवृत्ति है उसकी बलि देनी चाहिए। परन्तु मासलोलुपी व अर्थलोलुपी व्यक्तियो ने ऐसे शब्दो का तात्पर्य पशु ही मान कर पशुबलि का समर्थन करना प्रारम्भ कर दिया ।
आज भी हम समाचार-पत्रो मे पढते हैं कि अमुक व्यक्ति ने सन्तान पाने की इच्छा से एक बालक की बलि दे दी, अमुक व्यक्ति ने धन पाने की इच्छा से एक मनुष्य की बलि दे दी। ऐसे व्यक्ति भी संसार मे मौजूद हैं, जिन्होने धन के लोभ मे या देवी को प्रसन्न करने के लिए अपनी ही सन्तान की बलि दे दी है। अमरीका जैसे भौतिकवादी देश मे भी ऐसे हत्याकाड हुए हैं, जब अपने किसी विश्वास की खातिर सिर फिरे व्यक्तियो ने कई-कई व्यक्तियो की हत्या कर डाली । क्या कोई भी विवेकशील व्यक्ति ऐसे हत्याकाडो को उचित कह सकता है ? क्या ऐसे हत्याकाडो से किसी की मनोकामना पूरी हुई है ?
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