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४४] प्राचीन जैन स्मारक । उसका देवरान हि था जिसको आदि देव या वीर देवराज भी कहते हैं-संस्कृतका कुछ भाग यह है-" सोऽयं श्री देवराजेशो विद्याविनयविश्रुतः। प्रागुक्त पुरवीप्यतः पण्यपूगी फलापणे । शाकाब्दे प्रमिते याते वसुसिंधु-गुणेंदुभिः । परामवाब्देकार्तिक्ये धर्मकीर्ति प्रवृत्त्यये । स्याद्वाद मतसमर्थन खबितदुर्वादिगर्व वाग्विततेः अष्टादशदोष महामद गन निकुरुंब महित मृगराजः भव्यांभोरुह मानोरिन्द्रादि सुरेन्द्रवृन्द वंदस्य मुक्तिवधृ प्रिय भत्तः श्री पार्थ जिनेश्वरस्य करुणाब्धेः भव्यपरितोषहेतुं दाधरणिधुमणि हिमकर स्थैय. (S. I. Ins. Vol. I. No. 153 )
मदरास एपिग्राफी विभागमें यहांके मुख्य स्थानोंके नकशे व फोटो इस भांति हैं(१) सी नं० ३-पम्पापति मंदिर हम्पीके दक्षिण तरफका नकशा। (२) मी नं० ४-पम्पापतिके दक्षिण जैन मंदिरका (३) मो नं० ५- , , ,, ,, उत्तरकाभागका ,, (४) सी नं० ६-पम्पापतिके दक्षिणके मंदिरकी मापका , (५) सी नं० ७-हम्पीके दक्षिण चट्टानपर जैन मंदिरका ,, (६) सी नं. १-फोटो जैन मंदिर समूह हम्पी । (७) सी नं० १८-हम्पीके हेमकूटम्के नैन मं० पूर्वीय भागका फोटो। (८) सी नं० १९-उपरके मंदिरका दक्षिण पश्चिम भागका , (९) सी नं० २०- , , उत्तर " " " (१०) सी नं० २१-हम्पीके गणगित्ती जैन मंदिरका , , (११)सीनं० २२-ऊपर मंदिरके दीपस्तंभका दक्षिण पूर्वीय भा०,, (१२) सीनं०९८-हम्पीके पास नदीके निकट चट्टानपर जैन में,