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प्रस्तावना &
galambena
मद्रास और मैसूर प्रान्त में जैनधर्म । 1
दक्षिण भारत में जैनधर्मका इतिहास और वहांकी जनसमाजके जीवन पर उसका प्रभाव यह विषय इतिहास - प्रेमियोंके लिये जितना चित्ताकर्षक है उतना ही गहन और रहस्यपूर्ण भी है । साहित्य । और शिलालेखादिमें इस विषयसे सम्बन्ध रखनेवाली अनेक घटनायें विक्षिप्त रूपसे इधर उधर पायी जाती हैं, पर ज्यों ही इतिहासकार उन्हें घाराबद्ध करनेका प्रयत्न करता है त्यों ही उसे प्रमाणोंका अभाव पद २ पर खटकने लगता है, और उसे अपनी श्रृंखला पूरी करनेके हेतु अनुमान और तर्कसे काम लेना पड़ता है। अनुमान और तर्क यद्यपि इतिहासक्षेत्र में आवश्यक हैं किन्तु जबतक उनकी नीव अचल प्रमाणोंपर न जमाई जावे तबतक वे सच पथप्रदर्शक नहीं कहे नासके । मद्रास प्रांत में जैनधर्मके इतिहास से संबंध रखनेवाली कई ऐसी बातों का पता लग चुका है जिनसे आगामी अन्वेषण में बहुत सहायता मिलने की आशा है । इतिहासप्रेमियोंका कर्तव्य है कि वे इन बातोंको ध्यान में रखकर खोजमें दत्तचित्त होवें ।
इस विषय में सबसे प्रथम प्रश्न यह उपस्थित होता है कि तामिल देशमें जैन- ऐतिहासिक दृष्टिसे मद्रास प्रान्त में जैनधर्म कब धर्मका प्रचार | प्रचलित हुआ ? चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में भद्रास्वामीका अपने बारह हजार शिष्यों सहित दक्षिण भारतकी :- यात्रा करना जैन इतिहासकी एक सुदृढ़ घटना मानी जाती है ।