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मदरास व मैसूर प्रान्त | (२४) नं० १४१ सन् १९९९ - करुगुन्डुग्राम, जैन वस्तीके दाहनी ओर पाषाण
जब दोरसमुद्र में नरसिंहदेव राज्य करते थे तब उनका दंडाघिनाथ जैन श्रावक भद्रादित्य काश्यपगोत्री अलन्दापुर में राज्य करता था । इसका बड़ा पुत्र तैलदंडाधिप था, इसका पुत्र चाउन्ड युद्ध व शांतिका मंत्री था । इसकी भार्या देकमव्वे थी, पुत्र माघपरिसन्ना था । भार्या बम्मलदेवी थी । इस देवीका पिता महामंत्री मरियने थे माता जव्वे थी, छोटे चचा भरतदंडनाथ थे । परिसन्ना के पुत्र शांत थे। परिपन्नाके गुरु श्रीवासुपूज्य सिद्धांतदेव थे, यह बड़ा वीर था । इसने अमलसे युद्धकर शत्रुकी सेनाको नष्ट किया तब राजाने निर्गुडनादमें करगुंडग्राम दिया । परिसन्ना के स्वर्गवास होनेपर उसके पुत्र शांतिदंडनायकने एक जिनमंदिर बनवाया और भूमिका दान श्रीवासुपूज्य मुनिके शिष्य मल्लिषेण पंडितके सन्मुख किया ।
(२९) नं० १६४ सन् ९७० अनुमान - गंदसी ग्रामके उत्तर द्वारपर पाषाण । श्री जिनसेन भट्टारकके शिष्य गुणभद्रदेव थे इनकी शिया आर्यिका कादम्बेकान्ती थी । तब सत्यवाक्य कोंगनी वर्मा धर्म महाराजाधिराज राज्य करते थे, यह आर्यिकाका स्मारक है ।
चामराय पाटन ता०
श्रवणबेलगोला इसी में गर्भित है । उसके शिलालेखोंका वर्णन कर चुके हैं । अन्य स्थलोंके नीचे प्रमाण हैं
(२६) नं० १४६ सन् १९०४, ग्राम बेक्का | जैन वस्तीके सामने पाषाणपर । जब समुद्र में प्रताप होयसाल बल्लालदेव राज्य