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प्राचीन जैन स्मारक |
होयसाल जिनालय बनवाया था उसके लिये यह ग्राम दिया था । यहां मादिराज और शंकरदेवने श्रीपार्श्वदेवका मंदिर बनवाया जिसकी प्रतिष्ठा पुष्पसेन देवने की । व अष्टविध पूजाके लिये श्रीवासपूज्य सि० देवके चरण में भूमि भेट की जिसको उन्होंने वृषभनाथ पंडि तके सुपुर्द की ।
(२१) नं ० ३ ग्राम जवगल्लू । जैन मंदिरके पाषाणपर । कुन्द० दे० ग० म० अमरचरकी शिष्या आर्यिका १ मासमें आठ उपवास करनेवाली ९७ वर्ष जीकर समाधिमरण । इनके सह
पाठी गुणचन्द्र भट्टारक थे।
(२२) नं० ७७ सन् १२२० | आमीवेरीनें शिव मंदिरके सामने पाषाणपर। जब होयसाल बीर वल्लालदेव दोर समुद्र में राज्य करते थे तब उनके आधीन प्रसिद्ध मंत्री कलसूर्यवंशी राचरस थे । इन्होंने सहस्रकूट जिनकी मूर्ति बनवाई तथा राजासे लेकर ग्राम हंदरहाल भेट किया । इसके गुरु मूलसंधी दे० ग० पुस्तक गच्छ, इंग्लेश्वर बलि माघनंदि सिद्धांतदेव के शिष्य शुभचन्द्र त्रैविद्यदेव इनके शिष्य सागरनंदि सिद्धांतदेव थे। दूसरे जैनियोंने सहस्रकूट जिन मंदिर और कोट बनवाया । इस मंदिरको एक कोटि जिनालय कहते हैं तथा जैनियोंने शांतिनाथका एक और मंदिर बनवाया, राजाने भूमि दान दी। इस लेख में आरसीकेरी नगरकी बहुत प्रशंसा है ।
(२३) नं० ७८ सन् १२३० ई० ? उसी पाषाणपर कुमारी सोवलदेवी, हेगड़े दत्तप्पाके छोटे भाई सिंगप्पाने, ब्राह्मणोंने व १००० कुटुम्बोंने द नागरिकोंने सहस्रकूटके लिये भूमि दी ।