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मदरास व मैसूर प्रान्त । [२४५ टीकामें भी यह कथन आया है कि सिंहनंदि मुनिकी कपासे गंगवंशकी उन्नति हुई।
स नोट-ऊपरके कथनसे विदित होगा कि गंगवंशी गजा जैनी थे । इनमें जैन शास्त्रानुसार आदर्श गृहस्थके लक्षण थे। ये वोर, युद्धकुशल, राज्य प्रबन्धक, विद्वान, तथा धर्मात्मा थे। चामुंडराजा व गंगराजाकी वीरता, युद्धकुशलता व धर्मज्ञता ध्यानमें लेने योग्य है । (२) राष्ट्रकूरवंशका वर्णन बेलगोलाके शिलालेखोंमें ।
(१) नं० ३५ (२४) सन् ( ० ०के करीब पार्श्वनाथ वस्तीपर। यह इस वंशका सबसे प्राचीन लेख है । इसमें राजकुमार रणावलोक कम्बय्याके राज्यका वर्णन है । यह ध्रुवका पुत्र था व इसका बड़ा भाई गोविंद तृ० था । जब ध्रुवने शिवमारको कैद कर लिया था तब यह कम्बय्या गंग राज्यका प्रबंधक था । (६८) हेगड़े देवनकोटका लेख नं० ९३ भी कहता है कि यह यहां राज्य करता था । ऐसा ही लेख नं० ६१ नेलमंगल (E. C. IX) कहना है।
(२) नं० १३३ (५७) सन् ९८२ गन्धवारन वस्तीके सामने एक स्तम्भपर । इसमें इन्द्र चतुर्थकी प्रशंसा भरी हुई है। इसने यहां श्रवणबेलगोलामें सन् ९८२में समाधिमरण किया था। यह कृष्ण तृका पोता था, गंग गंगेय (बुडक)की कन्याका पुत्र था और राजचूडामणिका जमाई था । इस जैन वीर श्रावकको नीचे प्रमाण उपाधियां थीं
(१) राइकंदर्प, (२) राजमार्तड (३) चलदंकसार (४) चलदाग्गली, (५) कीर्तिनारायण (६) एलेववेदेना (७) गेदेगलाभरण (८) बीर रवीर ।
नं. ६७ (५४) सन् ११२९ इसमें दो राष्ट्रकूट राजाओंका वर्णन है-साहसतुंग और कृष्ण । इस साहसतुंगकी सभा अक