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२४४] प्राचीन जैन स्मारक । पुत्र जिनदेवानने जो श्री अजितसेनका शिष्य था बेलगोलामें जिनमंदिर बनवाया।
(१४) नं. ३७८ सन् १०१५ जिननाथपुर शांतिनाथ वस्तीमें कहता है कि गोयनंदि आचार्य ने जैनधर्मकी बहुत प्रभावना की।
(१६) नं० ६७ (५४) सन् ११२९ पार्श्वनाथ वस्तीके स्तम्भपर कि गंगराजाने श्रीविजयकी प्रतिष्ठा की। इसीमें गंगोंके वंश स्थापनमें आशीर्वाद देनेवाले मुनि सिंहनंदिका वर्णन है। इसमें कोंगनीवर्मा गंगराजाकी यह वीरता बताई है कि इसने एक तलवारसे पाषाणके खंभेको काट डाला था।
(१७) नं० ३४५ (१३७) ११५९ । भंडार वस्ती, कहता है कि केल्लनगिरि ग्रामको गंगोंने वसाया था जहां हुल्लाने कई मिन मंदिर बनवाये ।
१८) नं० ३९७ सन् ११७९-साननहल्लीग्राममें-कहता है कि सिंहनंदि मुनि गंगराज्यके दक्षिण में संस्थापक थे।
(१९) न० ३८७ (South Indian Insp. II) हस्तिमल्ल कृत उदयेन दिरम दानपत्र कहता है कि गंगवेशने सिंहनंदी मुनिसे आशीष पाई।
(२०) कुडलरके लेखोंमें (M. A. R. for 1921) मारसिंहका कथन है उसमें भी है कि सिंहनंदि आचार्यकी कपासे कोंगुनीबर्मा या माधवने बल प्राप्त किया था ।
१२१) शिभोगाका नं. ४ (E. C. VII.) व नगरका नं० ३५ व २६ (E. C. VIIL) कहते हैं कि सिंहनंदिके प्रतापसे यहां गंगराज्य स्थापित हुआ । श्री गौम्मटसारकी संस्कृत प्राचीन