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प्राचीन जैन स्मारक |
२३४ ] या शिलाकूट है । यह पाषाण वर्ग है ४ फुट चौड़ा व ५ फुट ऊंचा है । इस पर लेख है जो कहता है कि बेली गुम्बाके नेमिचंद पंडित जो दरबारी गुरु थे उनके शिष्य व बालचन्द्र देवके पुत्रने १२१३ में समाधिमरण किया तथा इसे वैरोजाने बनवाया तथा इसमें यह भी है कि किसी कालव्वे स्त्रीने सन् १२१४में समाधिमरण किया, शायद यह ऊपरके पुरुषकी स्त्री हो ।
छोटी पहाडी के पश्चिम तावरकेरी सरोवर के उत्तर एक चट्टानपर लेख नं० ३६२ (१४२) है यह कहता है कि यहां साधु चारुकीर्ति पंडितने सन् १६४३ में समाधिमरण किया। दूसरा लेख नं० ६४ (४९) कहता है कि जैनाचार्य देवकीर्तिपंडितका समाधिमरण १९६३में हुआ तथा यह भी कहता है कि दानशालाका निर्मापन हुआ है ।
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(२) ग्राम हले बेलगोला - श्रवणबेलगोलासे उत्तर ४ मोल । यहां होयसाल ढंगकी एक ध्वंश जैन वस्ती है इसमें कायोत्सर्ग जैन मूर्ति २ || फुट ऊंची है तथा एक मूर्ति पार्श्वनाथकी भी कायोत्सर्ग फणसहित ९ फुट ऊंची है । छतपर आठ दिग्पाल बने हैं । एपिग्रैफिका कर्णाटिका जिल्द ५ में चामरणपाटनका लेख नं० १४८ सन् १०९४ कहता है कि होयसाल राजा विष्णुवर्द्धन के पिता एरयंगने जैनाचार्य गोपनन्दीकी सेवामें एचनहली और बेलगोला १२ वसतियांके जीर्णोद्धार के लिये दिया । गोपनंदी गुरुकी प्रशंसा लेख नं० ६९ (५५) सन् ११०० में भी है । यहां एक खंडित जैनमूर्ति ग्रामके मध्य सरोवर के पास विराजित है । (३) ग्राम साने हल्ली - बेलगोलासे ३ मील । यहां ध्वंश