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मदरास व मैसूर प्रान्त। [२०९ चित्रसे प्रगट है जो जैन मठमें मौजूद है । इसमें श्रीआदिनाथ भगवानकी पल्यंकासन ६ फुट ऊंची मूर्ति चमरेन्द्र सहित है ।आसनपर लेख नं० ७० है जिससे जाना जाता है कि होयसाल राजा विष्णुवर्द्धनके सेनापति गंगराजाने इस वस्तीको अपनी माता पचव्वेके हेतु सन् १११८में बनवाया था। भीतरके कमरेका जीर्णोद्धार ७० वर्ष हुए मैसूर राज्यधरानेकी स्त्रियोंने कराया था जिनका नाम है देविरम्मन्नी और केम्पमन्नी। इस पहाड़ीपर नितने मंदिर हैं उनमेंसे इसी मंदिरमें ही प्रदक्षिणा है।
(३) चन्द्रगुप्त वस्ती-यह सबसे छोटी २२से १६ फुट है। इसमें तीन कोठरी हैं। मध्यमें श्रीपार्श्वनाथकी मूर्ति है उसकी दाहनी ओर पद्मावतीदेवी व बाईं ओर कूष्मांडिनी देवी है । वरामदेमें दाहनी तरफ धणेन्द्र हैं, बाईं ओर सर्वान्हयक्ष हैं-ये सब बेटे आसन हैं। इस वस्तीके भीतर द्वारोंपर बहुत सुन्दर खुदाई की हुई है । इनमें जो चित्र खुदे हैं उनमें श्रीभद्रबाहु श्रुतकेवली और महाराज मौर्य चन्द्रगसके जीवनसंबंधी अनेक दृश्य हैं । यहीं चित्रकार दासजह का नाम १२वीं शताब्दीके अक्षरों में खुदा हुआ है। इसीने सन् १ १ ४५ का लेख नं० १४० अंकित किया था जो मध्य कोठरीके सामने कमरेम खड़ी हुई क्षेत्रपालकी मूर्तिके आसनपर है। करीब १६८०के अनुमान प्रसिद्ध चिदानंद कविने मुनिवंशाभ्युदय काव्य रचा है उसमें यह लिखा है कि इस मंदिरको महाराज चन्द्रगुप्तके वंशजोंने बनवाया था। यह यहां सबसे प्राचीन इमारत है।
(४) शांतिनाथ वस्ती-यह २४से १६ फुट है। इसमें श्रीशांतिनाथनीकी मूर्ति ११ फुट ऊंची कायोत्सर्ग है।