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________________ २०८ ] प्राचीन जैन स्मारक । पहाड़ीको कटवम व नं. २७, ७६, ८४ में कलबप्पु तथा नं. १२, २८, ७७ व १३६ में कलवप्पु लिखा है । शिलालेख नं. ७६ जो इस पहाड़ीपर कत्तले वस्तीके पास है उसमें इस पर्वत के एक भागको तीर्थगिरि व उसीके पास लेख नं. ८४ में इसके एक भागको ऋषिगिरि कहा है । इस पहाड़ीपर सब जैन मंदिर द्राविड ढंगके हैं । इन मंदिरोंके छातेके चारों तरफ कोटकी भीत है जो ५०० फुट लम्बी व २२५ फुट चौड़ी है । चन्द्रगिरिके जैन मंदिरोंका दिग्दर्शन | (१) श्रीपार्श्वनाथ वस्ती - यह १९ फुटसे २९ फुट है । इसमें श्रीपार्श्वनाथकी मूर्ति कायोत्सर्ग १५ फुट उंची ७ फणके छत्र सहित है । यह इस पहाड़ीपर सबसे ऊँची मूर्ति है । इसके नवरंग में शिलालेख नं ० ६७ जिससे प्रगट है कि सन १९२९ में जैनाचार्य श्रीमलिषेण मलधारीका समाधिमरण हुआ था । इसके सामने मानस्तम्भ है। जैन मूर्तियां चारों तरफ खड़ी हुई है, नीचे दक्षिणकी तरफ बैठे आसन पद्मावतीदेवी है, पूर्वमें खड़े हुए यक्ष हैं, उत्तर में बैठी हुई कूप्मांडिनीदेवी है, पश्चिममें ब्रह्मदेव या क्षेत्र - पाल हैं । करीब १७८० ई० में प्रसिद्ध अनन्त कविकृत बेलगोला गोमटेश्वर चरित्र के अनुसार इस मानस्तम्भको मैसूर महाराज चिक्कदेवराज ओडयर (सन् १६७२ - १७०४ ) के समय में जैन व्यापारी पट्टे याने बनवाया था । (२) कट्टले वस्ती - यह मंदिर इस पर्वतपर सबसे बड़ा है । १२४ फुटसे ४० फुट है । इसको पद्मावती वस्ती भी कहते हैं । अब इसपर शिखर नहीं है, पहले शिखर था जैसा उस पुराने
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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