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१९६] प्राचीन जैन स्मारक । उसका पुत्र विष्णु, उसका पुत्र मारसिंह, उसका पुत्र वल्लाल था।
(४१) नं० ३२ सन् ११८४ अले संद्रामें, ग्रामके मुख्य द्वारके दक्षिण एक पाषाणपर । त्रिभुवनमल्ल विनयदित्य होयसालदेवने अपने देशभरमें बुराईको नष्ट किया व भलाईका प्रचार किया। उसके देशकी हद्दबन्दीमें कोंकण, आल्वखेड़ा, बैगलनाद्र, तलकाद
और साविमले थे । यादव वंशमें साल हुआ जिसने मुनिकी रक्षा सिंहवध करके की इससे पोयसाल नाम प्रसिद्ध हुआ। इसी वंशमें राना विनयदित्य हुआ। इसकी भार्या केलेयव्वरसी थी इस रानीसे सुरक्षित मरियने दंडनायक थे । इसकी भार्या देकव्वे थी। यह शाका ९६७में असंदी नादमें सिंदगेरीका राजा हुआ । पोयसाल और केलेयव्वेसे वीरगंग एरयंग उत्पन्न हुए उसकी भार्या एचला देवी थी उससे तीन पुत्र हुए-वल्लाल, विष्णु और उदयद्वित्त्य । मरियने दंडनायककी दूसरी स्त्री चमवे थी। इससे तीन कन्याएं जन्मी-पद्मलदेवी, चामलदेवी, बोपदेवी । इन पुत्रियोंको विद्या, गान व नृत्यमें प्रवीण किया गया । जब युवती हुई तब इन तीनोंको बल्लालदेवने विवाहा । विष्णुने तुलादेश, चक्रगोट्टा, तलवनपुर, उच्चंगी, कालाल, सेवेनमोल, बल्लूर, कांची, कोंगू, हदुजघट्ट, बैजलनाद, नीलाचल ददिग्ग, रायरायपुर, तरेयूर, कोयतूर, गोंदवादी स्थल ले लिये। जब कांचीको लेकर विक्रमगंग विष्णुवर्द्धनदेव दोर समुद्रमें राज्य करते थे तब उनका सेवक गंग राजा दंडाधीश था । यह ज्येष्ठ मरियने दंडनायकका साला था। इस गंग दंडनायकने बहुतसे जैन मंदिरोंका जीर्णोद्धार किया, ध्वंश नगरोंको बनवाया, सर्वसाधारणको