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मदरास व मैसूर प्रान्त। [१८७ आद्यंघ्रौ कन्यकायाम यतिपति मुनि चंद्रायवर्याग्रशिष्यो । लेभे चेतः कृतार्हत्पदयुग मुनिचंद्रार्यवर्यस्समाधिम ॥ तच्छिष्य वृषभनाथ वर्णिना लिखितम् । पद्यम विद्यानंदोपाध्यायेन कृतं ॥
भावार्थ-शाका १४ ४ ० श्रावण वदी १२ गुरुवार कन्या लग्नमें यतिपति मुनि चंद्राचार्यके मुख्य शिप्य मुनि चन्द्राचार्यने समाधिमरण किया। उनके शिष्य वर्णी वृषभनाथने लिखा, पद्य बनाया विद्यानन्द उपाध्यायने ।
(५) नं० १४८ ता० १५२८ ? ऊपर पहाड़ीपर सेनगण निषीधिकाके उत्तरपूर्व कालोग्रगणके मुनि चंद्रदेवके चरणचिह्न ।
(६) नं० १४९ ता० १६७४ ई० । ऊपरकी पहाड़ीपर बलिकल्लूके पूर्व चरणचिह्न लक्ष्मीसेन मुनीश्वरके हैं व नीचे लिखा श्लोक है--
१५९६ शाके द्रव्यपदार्थभृतधरणी संख्य मिते वत्सर । चानन्दे वर पुष्पमास मिते पक्षे पचमी सत् तिथौ ॥ लक्ष्मीसेन मुनीश्वरेण पर र्वादीभसिंहेन वै ।
हेमाद्रौ वर पार्श्वनाथजिनपे दीक्षाश्रिता सत्फला ॥ - भावार्थ-इस हेमगिरिपर शाका १९९६में पौष सुदी ५को वादीरूपी हाथियोंको सिंह समान श्रीलक्ष्मोसेन मुनिने पार्श्वनाथ मुनीन्द्रके पास दीक्षा ली।
(७) नं० १५० सन् १८१३ ई० ऊपरकी पहाड़ीपर उत्तरकी तरफ चट्टानपर संस्कृतमें श्लोक है--
श्रीमच्छाके शराग्निव्यसनहिमगु संख्यामिने श्रीमुखाब्दे । पौष मासे त्रयोदश्यावनिजदिवसे धारभे चापलग्ने ॥