________________
( २ )
१९६९ में सेठ कानपुर में भी
व्रजलालजी दोनोंका स्वर्गवास होगया । फिर सं० सदासुखजी भी स्वर्ग पधार गए । सं० १९७२ में एक दूकान खोली गई जिसमें सेठ मांगीलालजी काम करने लगे व कानपुर रहने लगे । सेठ सुगनचंदजी और जौंहरीलालजी लखनऊ में 1 ही रहे और धर्मसाधन करते हुए व्यापार में तरक्की की । जौंहरीमलजीके कई पुत्रादि हैं। सेठ सुगनचन्दजी पूजन सामायिक दानादि कार्यों में बहुत उत्साही हैं। उनकी संगतिसे सेठ मांगीलालजी व जौहरीलालजी सदा दान धर्म करते रहते हैं । सेठ जौहरीलालजी लखनऊकी जैन सभा के उपसभापति हैं । सआदतगंज में आपके घराने से ही धर्मकी जागृति है । आपने जैनधर्मकी प्राचीनता व उत्तमता बतानेवाली इस उपयोगी पुस्तकका प्रकाश कराया है अतः आपकी इस अनुकरणीय उदारता के लिये आप कोटिशः धन्यवादके पात्र हैं ।
प्रकाशक ।